दिव्य विचार: धन संग्रह करो पर दान भी करो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: धन संग्रह करो पर दान भी करो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि धन का संग्रह करना भी समाज के कल्याण के लिए बाँध का निर्माण करने के समान है। बिना धन संग्रह के समाज-कल्याण नहीं होता। महाराज हम तो सोचे थे आज आप दान करने की बात करोगे; आपने तो संग्रह की बात कर दी। हमको ऐसा पता होता तो बाल-बच्चों को लेकर आते। बिल्कुल, मैं अपनी बात को दुहरा रहा हूँ। धन के संग्रह के बिना समाज का कल्याण नहीं होगा, संस्कृति की रक्षा नहीं होगी, देश का उत्थान नहीं होगा, मानवता की सेवा नहीं होगी। इन सबके लिए धन का संग्रह जरूरी है। बाँध बनाओ लेकिन ध्यान रखो बाँध बनाते समय सर्वे होता है कितना पानी ये झेल सकेगा, कितने पानी को रोकने की क्षमता है और इस पानी को कन्ज्यूम (उपयोग) करके कितनी धरती को हम सिंचित कर सकेंगे। ये पूरा सर्वे होता है फिर उसी हिसाब से पानी को वहाँ रखा जाता है। ये तय किया जाता है किस माह में हमें कितना पानी रखना है और कितना पानी छोड़ना है। जितना क्यूसेक (पानी की मात्रा को मापने की इकाई) पानी आता जाता है उसी * हिसाब से छोड़ते भी जाते हैं। डेट्स (तारीख) फिक्स (निश्चित) रहती है। जितना पानी आया उतना खाली करो नहीं तो बाँध टूट जाएगा। मैं आपसे कहता हूँ धन का संग्रह करो, पर बाँध की भाँति करो। जितना पैसा आए उतना बहाते भी जाओ। जीवन में सदैव कल्याण बना रहेगा। जिस अनुपात से कमाओ उसी अनुपात से खर्च करो। संग्रह करो लेकिन अनुग्रह के लिए। इसी अनुग्रह का नाम दान है। आचार्य उमास्वामी ने दान के स्वरूप का विवेचन करते हुए लिखा -स्व-पर के अनुग्रह के लिए अपने 'स्व' यानि धन का अतिसर्ग अर्थात् त्याग करना; दान है। अनुग्रह के लिए धन का त्याग करना दान है। तुमने धन संग्रह किया अब उसका क्या करना है? अनुग्रह करना है। किसका अनुग्रह? स्व का और पर का। धन के त्याग से स्व का अनुग्रह।