दिव्य विचार: पैसों के फेर में पुण्य को महत्व नहीं- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: पैसों के फेर में पुण्य को महत्व नहीं- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि पैसा कमाने के लिए तुम्हारे अन्दर जितना उत्साह है, पुण्य कमाने के लिए उतना उत्साह है? मन से पूछो ईमानदारी से बोलना, घर से मन्दिर आ रहे हो भगवान का अभिषेक करने का पुण्य भाव लेकर, हृदय में भी विशुद्धि है, उमंग है, अहोभाव है, आज भगवान के चरणों में जाकर में एक पवित्र कार्य करूँगा और अपने जीवन में पवित्रता के संस्कार भरूँगा, यह सोचकर तुम घर से मन्दिर के लिए निकले हो। रास्ते में एक ऐसा आदमी दिख गया, जिसने छः महीने से पेमेंट रोका हुआ है, क्या करोगे? मन्दिर आओगे कि उसके पीछे भागोगे? ईमानदारी से बोलना... महाराज ! भगवान तो जहाँ के तहाँ, कहीं जाने वाले नहीं, यह दोबारा कहाँ मिलेगा, इसको पकड़ो। क्या हो गया? महत्त्व किसे, प्राथमिकता किसे? बात लोग पुण्य की करते हैं लेकिन महत्त्व पुण्य को नहीं देते। इससे क्या विसंगति होती है थोड़ी देर बाद बताऊँगा। अगर तुम सच्चे धर्मी होगे और जीवन के विज्ञान को ठीक तरीके से समझोगे तो तुम पैसे से ज्यादा महत्त्व पुण्य को दोगे। मैं आपसे एक सवाल करता हूँ- पेड़ के पत्तों को सीचें और पेड़ की जड़ को सीचें, लाभ किसमें ज्यादा है? पत्तों को सींचने में या जड़ को सींचने में? आप लोग क्या करते हैं जड़ को सींचते हो या पत्ते ? बोलो... पत्ते। बहुत होशियार किसान हो तुम ! कह रहे हैं पत्ते और कितने सीना तानकर बोल रहे हैं कि पत्ते ही सींचते हैं। हमारी कैसी विडम्बना है, पत्ते सींचने वाले को कभी समझदार नहीं कहा जा सकता। काश ! तुम अपनी समझदारी को प्रकट कर पाते, जीवन की सच्चाई का बोध कर पाते तो तुम्हारी दशा और दिशा सब परिवर्तित हो जाती है। जितना उत्साह पैसा कमाने के लिए है; पुण्य कमाने के लिए उतना उत्साह लोगों में नहीं दिखता। तुम्हें पैसे का महत्त्व दिखता है, तुम पैसे को महत्त्व देते हो, पुण्य को महत्त्व नहीं देते।