दिव्य विचार: अपनी आत्मा का चिंतन करें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि बन्धुओं ! पहला प्रयास करो, भाव बिगाड़ो नहीं और यदि कदाचित् भाव किसी निमित्त को पाकर बिगड़ जाए तो सम्हालने में प्रमाद मत करो, तुरन्त के तुरन्त सम्हालो । ध्यान रखना- भाव सुधरेगा तभी भाव सुधरेगा। अपने भाव को सम्हालो, अपने भाव को सुधारो। आजकल देखने में ऐसा आता है कि लोग अपनी क्रियाओं के प्रति तो बहुत जागरूक रहते हैं, पर भावों की तरफ बहुत कम ध्यान दे पाते हैं। सन्त कहते हैं- मूल, भाव है। पहली बात अपने अन्दर के भाव को सम्हालो, शुभ भाव को बढ़ाओ, अशुभ भाव से बचो। अशुभ भाव से बचने के लिए मैंने जो चार सूत्र दिए, अपने संस्कारों को ठीक कीजिए और शुभ आलम्बनों को लीजिए, सत्संग, स्वाध्याय, स्वात्म- चिन्तन- ये हमारे शुभ भावों की अभिवृद्धि का एक बहुत बड़ा माध्यम हैं। हम नित्य सत्संग करें, हम अपनी आत्मा का चिन्तन करें, स्वाध्याय करें और प्रभु की आराधना करें, यह सब ऐसे निमित्त हैं, जिनसे हमारे शुभ भावों की अभिवृद्धि होती है, इन्हें बढ़ाने की कोशिश कीजिए। ऐसे आलम्बनों का नित्य प्रति आश्रय लेने का अभ्यास कीजिए तो देखिए भाव कितने बदलते हैं। मैं आपसे पूछता हूँ- जितनी देर तक सत्संग में रहते हैं, आपके भाव कैसे होते हैं? एक बार एक व्यक्ति ने कहा कि महाराज ! जितनी देर आपके पास रहते हैं, भाव बहुत अच्छे रहते हैं तो मैंने कहा- फिर जाते क्यों हो? महाराज ! जाना पड़ता है। मैं मानता हूँ जाना पड़ेगा, सबको जाना पड़ता है लेकिन मैं आपसे कहता हूँ- अगर भाव से आपने एक घण्टे का सत्संग किया तो यह आपके तेईस घण्टे के जीवन पर हावी रहेगा और आपको सम्हालेगा। जब कभी भी भाव बिगड़ेंगे आपका मन आपको अपने आप सम्हाल लेगा।