15 दिनों में होनी थी विभागीय जांच, 6 माह बाद भी नहीं हुई

सतना | नगर निगम में होने वाली जांच क्या दिखावा होता  है? या फिर जांच का आदेश देकर अधिकारी इस बात को भूल जाते हैं, कि उन्होंने कोई जांच कराने का आदेश दिया है। यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि नगर निगम में कई ऐसी जांचे हैं जो वर्षों से लंबित हैं। उन्हीं जांचों में से एक जांच निगम के सहायक आयुक्त और लेखापाल के खिलाफ विभागीय जांच भी शामिल है। इस जांच को पन्द्रह दिनों में पूरा होना था पर जांच की प्रक्रिया तक अभी नहीं शुरू हुई है,जबकि जांच के आदेश हुए 6 माह से ज्यादा हो गए हैं और तो और जांच का जिम्मा जिस अधिकारी को दिया गया था उनका भी स्थानान्तरण हो गया और 12 अपै्रल को जांच अधिकारी भी निगम से रिलीव हो गर्इं। अब सवाल उठता है कि इस जांच का क्या होगा? कब तक नया जांच अधिकारी नियुक्त होगा? जांच अधिकारी कब जांच शुरू करेगा और वह कब तक अपनी जांच रिपोर्ट देगा?

ये थे आरोप 

  • निविदा का प्रकाशन नहीं कराया गया 
  • बगैर आयुक्त की अनुमति के रि-टेंडर जारी किया गया 
  • बगैर अधिकार के अनाधिकृत रूप से सात दिनों की शार्ट टर्म निविदा जारी की गई 
  • यहां भी निविदा जारी करने के लिए न तो कमिश्नर की अनुमति ली गई और न ही समाचार पत्रों में निविदा का प्रकाशन कराया गया 
  • प्रशासकीय वित्तीय स्वीकृति और प्रस्तुत बिल में अंतर 

इनके खिलाफ होनी थी डीई 
बीरेन्द्र तिवारी : सहायक आयुक्त, विभागाध्यक्ष फायर शाखा व सचिव निविदा समिति 
देवेन्द्र पांडेय : लेखा पाल, बिल प्रस्तावित किया 

जांच अधिकारी का स्थानांतरण 
यहां उल्लेखनीय है कि नगर निगम के दो फायर वाहनों में पीटीओ (पॉवर टेक आॅफ) पम्प लगवाने के लिए निविदा जारी करने से लेकर बेल पेश करने तक के मामले में कथित तौर पर हुई गड़बड़ी के निगम के उपायुक्त वित्त समेत 6 लोगों के खिलाफ तत्कालीन कमिश्नर अमनबीर सिंह ने कार्रवाई की थी। तीन लोगों के खिलाफ पर निंदा व  एक की वेतन वृद्धि रोकी गई थी तो सहायक आयुक्त वीरेन्द्र तिवारी व लेखापाल देवेन्द्र पांडेय के खिलाफ विभागीय जांच के आदेश दिए गए थे। विभागीय जांच के लिए अधिकारी सहायक आयुक्त नीलम तिवारी और प्रस्तुतकर्ता अधिकारी अतिक्रमण प्रभारी रमाकांत शुक्ला को बनाया गया था। पिछले वर्ष के नवम्बर माह में जारी किए गए विभागीय जांच को अगले 15 दिनों में पूरा किया जाना था, लेकिन 6 माह से ज्यादा के करीब का समय व्यतीत होने के बाद भी जांच नहीं शुरू हो पाई है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि विभागीय जांच की जांच अधिकारी बनाई गई सहायक आयुक्त नीलम तिवारी के स्थानान्तरण के बाद अब जांच भी अधर में लटकती नजर आ रही है। 

चार के खिलाफ पर निंदा 
पीटोओ पम्प खरीदी में हुई कथित गड़बड़ी में वर्कशॉप प्रभारी सहायक आयुक्त वीरेन्द्र तिवारी और लेखा अधिकारी देवेन्द्र पांडेय के खिलाफ जहां विभागीय जांच के आदेश दिए गिए थे, वहीं सहायक फायर अधीक्षक आरपी सिंह परमार की एक इंक्रीमेंट रोकी गई थी, जबकि उपायुक्त वित्त भूपेन्द्र देव सिंह परमार, प्रभारी अधीक्षक यंत्री एसके सिंह, सहायक आयुक्त एसडी पांडेय और प्रभारी कार्यपालन यंत्री के खिलाफ पर निंदा हुई थी। बताया जाता है कि उपायुक्त वित्त भूपेन्द्र देव सिंह परमार पर आरोप है कि उन्होने बिल प्रस्तावित किया था, जबकि प्रभारी अधीक्षण यंत्री एसके सिंह निविदा समिति के अध्यक्ष थे, तो सहायक आयुक्त एसडी पांडेय और प्रभारी कार्यपालन यंत्री नागेन्द्र सिंह निविदा समिति के सदस्य थे। 

जिन अधिकारियों - कर्मचारियों के खिलाफ विभागीय व अन्य किसी प्रकार की जांच चल रही है वह जांच जल्द से जल्द और तय समय- सीमा में पूर्ण हों इस बात का प्रयास किया जाएगा। पीटीओ पम्प की खरीदी से जुड़ी जांच भी जल्द पूरी कराई जाएगी।
तन्वी हुड्डा, आयुक्त नगर निगम