दिव्य विचार: प्रकृति के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: प्रकृति के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि हमें सारी दुनिया के प्रति कृतज्ञ होना चाहिये, पूरी प्रकृति के प्रति कृतज्ञ होना चाहिये। सबके प्रति अपनी कृतज्ञता को ज्ञापित करना चाहिये लेकिन उसकी शुरुआत सबसे पहले अपनी जन्मदाता, अपनी जीवनदाता के प्रति होना चाहिये। जीवन में सबसे पहला स्थान किसका है? मुझसे एक बार सवाल किया कि महाराज जी परमात्मा हो, महात्मा हो और धर्मात्मा हो और माँ हो इनमें सबसे पहला स्थान किसका, परमात्मा, महात्मा, धर्मात्मा और माँ। पहला स्थान किसका ? शंका समाधान में मुझसे किसी ने पूछा तो मैंने कहा मुझसे पूछो तो मैं कहूँगा पहला स्थान माँ का ! चारों में सबसे पहला स्थान माँ का होना चाहिए। क्योंकि माँ न हो तो हमारे जीवन में कुछ भी नहीं है। आज एक व्यक्ति धर्मात्मा बना है तो माँ की कृपा से और परमात्मा बना है तो माँ की कृपा से जिसे हम परमात्मा के रूप में पूजते हैं उनको जन्म देने वाली भी माँ हैं, जिन्हे महात्मा के रूप में हम सम्मानित करते हैं, हम पूजते हैं उनको जन्म देने वाली भी माँ है और जिसे धर्मात्मा के रूप में आदर देते हैं उसे जन्म देने वाली भी माँ है। अगर माँ नहीं तो कुछ भी नहीं और माँ, माँ में वह ताकत है जो अपनी संतान को जन्म देकर उसे धर्मात्मा बनाती हैं वही धर्मात्मा आगे बढ़कर महात्मा बनता हैं और वही महात्मा अपनी आत्मा में डूब कर परमात्मा बन जाता है। इसलिये यदि माँ को परमात्मा का बीज कहूँ तो कुछ भी गलत नहीं है। माँ के अंदर वो सारी शक्तियाँ समाहित है जो उद्घटित होकर विश्व के श्रेष्ठ शक्ति के रूप में प्रकट होती हैं। माँ सबका बीज हैं। वो बीज हमारे भीतर घटित होना चाहिये। अंतः चेतना में प्रकट होना चाहिए। आज का मूल प्रतिपाद्य यही है कि हम महिमा जाने।