जब वक्त था, तब क्या कर रहे थे जिम्मेदार, अब मचा है हाहाकार
सतना | तेजी से बढ़ रहे कोविड संक्रमण व महामारी से हो रही मौतों ने एक बार पुन: जिला आपदा प्रबंधन की पोल खोल कर रख दी है। एक साल पूर्व जब कोविड ने दस्तक दी थी तब सरकार के साथ साथ स्थानीय प्रशासन ने लाकडाउन करने के पीछे तर्क दिया था कि लोगों की आवाजाही रूकने से जहां संक्रमण का विस्तार यकेगा वहीं प्रशासन को भी इतना वक्त मिल जाएगा कि वह स्वास्थ्य सुविधाओं को अपडेट कर सकें।
जनमानस ने भी प्रशासन के इस तर्क को माना और अपना भरपूर समर्थन दिया लेकिन आज एक साल बाद जब हम स्वास्थ्य सुविधाओं की ओर देखते हैं तो स्पष्ट होता है कि स्वास्थ्य सुविधाएं वहीं खड़ी हैं जहां एक साल पूर्व खड़ी थीं। बेशक एक साल में कोविड इलाज की व्यवस्था के नाम पर सरकार ने करोड़ों का बजट जिले को दिया हो मगर यह बजट कहां खर्च किया हुआ इसका कोई स्पष्ट ब्यौरा नहीं है। स्वास्थ्य सुविधाओं का हाल यह है कि एक साल पूर्व भी जांच रिपोर्ट रीवा व जबलपुर से आती थी आज भी वहीं से आ रही है। जब स्वास्थ्य विभाग जांच तक की सुविधा नहीं जुटा पाया है तो इलाज की कितनी कारगर व्यवस्था होगी इसका अंदाजा सहसा ही लगाया जा सकता है। जब वक्त था तब जिम्मेदार सोते रहे और अब सड़कों पर हाया तौब मचाकर कार्रवाइयां करते फिर रहे हैं।
वेंटिलेटर तक चालू नहीं कर सका अस्पताल प्रबंधन
चिकित्सक व पैरामेंडिकल स्टाफ के अलावा रोगी कल्याण समिति के कर्मचारी तो अपनी जान जोखिम में डालकर उपलब्ध संसाधानों की मदद से दिन रात इलाज मुहैया कराने में व्यस्त हैं लेकिन जिन पर सुविधाएं मुहैया कराने की जिम्मेदारी है वे ठन ठन गोपाल बने हुए हैं। स्वास्थ्य सुविधाओं में कितना सुधार जिम्मेदारों ने किया इसका एक नमूना धूल खा रहे वेंटिलेटर है जिन्हें सांसद के प्रयासों से अस्पताल प्रबंधन को महज इसलिए दिया गया था ताकि गंभीर मरीजों को आनन फानन रीवा न रेफर करना पड़े। जब तक वेंथ्अलेटर नहीं मिले तब तक जिला अस्पताल प्रबंधन के जिम्मेदार गंभीर मरीजों को यह कहकर रेफर करते रहे कि मजबूरी है , यहां वेंटिलेटर सुविधा नहीं है। अब जब वेंटिलेटर आकर धूल खा रहे हैं तब भी स्वास्थ्य महकमा उन्हें चालू नहीं करा सका है।
5 से 6 दिन में मिल रही रिपोर्ट
शहर में कोविड संक्रमितों की जांच तो हो रही है लेकिन इनकी रिपोर्ट 5 से 7 दिन में आती है। इसके कारण कई संक्रमित मरीजों का उपचार समय पर शुरू नहीं हो पा रहा है तो संक्रमित मरीज अन्य लोगों को भी संक्रमित कर रहे है। स्टार समाचार की पड़ताल में यह सामने आया कि जिला अस्पताल के माध्यम से रीवा व जबलपुर जो जांच के लिए सैंपल दिए जा रहे हैं, वो पोर्टल पर रिपोर्ट दर्ज करने में देरी कर रहे हैं। यही वजह है कि लोगों को रिपोर्ट मिलने में देरी हो रही है। एक यह भी बड़ा कारण है जो सतना में संक्रमितों व मृतकों की तादाद लगातार बढ़ रही है।
ये है बेड की उपलब्धता
जिला चिकित्सालय के ट्रामा यूनिट में कोविड मरीजों के लिए 60 बेड, आईसीयू के 16 बेड, पोस्ट कोविड और कोविड सस्पेक्ट के लिए 60 बेड वार्ड में इस तरह 126 बेड जिला अस्पताल में चालू है। आॅथोर्पेडिक वार्ड में 30 बेड कोविड के लिये शिफ्ट किए जा रहे हैं। वहीं धवारी स्थित जीएनएम में 96 बेड सेंट्रल आॅक्सीजन सप्लाई की सुविधा के साथ तैयार किए जा रहे हैं। यहां पोस्ट कोविड मरीजों को शिफ्ट किया जाएगा। प्राइवेट अस्पतालों में बिरला हॉस्पिटल में 22 बेड, सार्थक में 20 बेड, श्रीजी कान्हा में 30 बेड, आयुष्मान में 14 बेड और पाठक हॉस्पिटल में 8 बेड आॅक्सीजन सप्लाई वाले आईसीयू, एचडीयू और आइसोलेशन बेड हैं। 45 नर्सिंग होम में 287 कोविड बेड की व्यवस्था की गई है।
30 क्रिटिकल मरीज जिन्हें 3 घंटे में 1 जंबो सिलेंडर
कोविड वार्ड इंचार्ज डॉ लक्ष्मी ने बताया कि कोविड के क्रिटिकल मरीज लगभग 30 एडमिट है, जिन्हें कम से कम 3 घंटे में एक जंबो सिलेंडर की आवश्यकता होती है। कलेक्टर अजय कटेसरिया ने आपदा प्रबंधन की बैठक में बताया कि जिले में आॅक्सीजन की आपूर्ति की कोई समस्या नहीं है। आगे भी जिले को आवश्यकतानुसार आॅक्सीजन की पूर्ति पर्याप्त मिलती रहेगी। कलेक्टर के अनुसार रेमडेसिविर प्राइवेट अस्पतालों सहित जिला अस्पताल में पर्याप्त उपलब्ध हो रहे हैं।