दिव्य विचार: आपके भीतर क्षमा का भाव कब आता है- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: आपके भीतर क्षमा का भाव कब आता है- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि मुझे आप लोग कई स्थितियों में क्षमा की प्रतिमूर्ति दिख जाते हो। देखिए आपके अंदर क्षमा कब-कब आती है। जब आपके साथ आपका कोई नियमित ग्राहक कटु वचन बोल देता है तो उस समय आप चेहरे पर बड़ी मुस्कराहट रखते हुए मीठी प्रतिक्रिया करते हो। दस तरह का आइटम दिखाया, एक घण्टे तक आइटम देखने के बाद एक भी पंसद नहीं किया और ये टिप्पणी भी कर दी कि आपकी दुकान में तो कुछ है भी नहीं। सब अच्छे से अच्छे आइटम वहाँ हैं फिर भी टिप्पणी कर रहा है। एक घण्टे का समय बर्बाद किया ग्राहक ने और कोई आइटम पसंद नहीं किया और कह दिया आपके यहाँ कोई आइटम नहीं है। क्या करते हो आप? कोई बात नहीं है, बहन जी ! आप दो-चार दिन बाद आइए नया माल आने वाला है। क्या हो गया? एक ग्राहक अगर आपके यहाँ आकर ऐसा बोल रहा है। आप उसे बर्दाश्त कर रहे हैं क्षमा की मूर्ति बनकर। पर घरवाली यदि कटु वचन बोल दे तो आप बर्दाश्त कर पाते हो? उस समय क्या हो जाता है? ये क्षमा का एक रूप है। कभी-कभी किसी व्यक्ति का आपके प्रति दुर्व्यवहार होता है। मन में गुस्सा आता है लेकिन सामने वाले के स्टेटस (रुतबे) को देखते ही सोचते हैं- ये आदमी बहुत बड़ा है, इससे पंगा लेना ठीक नहीं है चुप रह जाते हैं, मन मसोस कर रह जाते हैं। क्षमा हुई न? ऐसी जगह भी क्षमा हो जाती है। कभी-कभी आप लोग किसी के ऊपर पूरी तरह से गुस्सा निकाल लेते हैं, खूब भड़ास निकाल लेते हैं और आखिरी में कहते हैं- जाओ, तुझे क्षमा किया। ये तीनों प्रकार की क्षमा की चर्चा आपसे आज नहीं की जाने वाली। पहले प्रकार की जो क्षमा है; वह लोभ प्रेरित क्षमा है। दूसरी प्रकार की क्षमा; क्षमा नहीं परिस्थिति से समझौता है, मजबूरी है। और तीसरे प्रकार की क्षमा भी क्षमा नहीं है; एक प्रकार की भड़ास निकलने के बाद की शांति है।