दिव्य विचार: मैं तेरा आभारी हूँ मां...- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते है कि माँ क्या होती हैं इसका पता भगवान महावीर के चरित्र को पढ़ते समय मुझे लगा । जब भगवान महावीर माँ त्रिशला के गर्भ में थे, उन्होंने सोचा कि मेरे हलन चलन से मेरी माँ को तकलीफ होगी। तो उन्होंने अपना मूवमेन्ट बंद कर दिया और जैसे ही पेट में पलने वाले वर्धमान महावीर का मूवमेंट बंद हुआ कोहराम मच गया, अरे, ये क्या? मेरे गर्भ को कुछ हो गया। आज किसी माँ के बच्चे का मूवमेंट बंद होता है तो क्या होता है? हाल बेहाल हो जाता है, खून पसीना एक कर देती है, डाक्टरों के चक्कर में लग जाती है। ये कैसे हो गया, मूवमेंट रुक गया- जैसे ही त्रिशला को ऐसा लगा कि बच्चे का मूवमेंट बंद है, एकदम तड़प उठी, कोहराम मच गया, ये क्या, ये तो बड़ा गड़बड़ है। भगवान ने अपने अवधि ज्ञान से जान लिया और सोचा अरे, मैंने तो सोचा था कि मेरी माँ को तकलीफ न हो इसलिये मूवमेंट रोका, पर धन्य है वो माँ जिसे कष्ट न मिलने पर कष्ट हो रहा है। वो है माँ, कष्ट न हो ऐसा सोच रहे हैं और उनको लग रहा है मेरी माँ को कष्ट हो रहा है। मूवमेंट रुकने से माँ को कष्ट होता है, थोड़ी कल्पना करो अगर माँ जिस समय गर्भ धारण करती हो उस समय थोड़ा भी ध्यान न रखे, थोड़ी भी लापरवाही, असावधानी कर दे तो क्या परिणाम होगा, आज हम जन्म ले सकेंगे? अपनी माँ को जाकर कोटि-कोटि कृतज्ञता ज्ञापित करो और कहो कि माँ तूने मुझ पर कितनी बड़ी कृपा की कि तूने मुझे जन्म दिया, मेरे भार को नौ माह तक पेट में सहा मैं तेरा आभारी हूँ तेरी जगह आज की कोई आधुनिक राक्षसी का रूप रखने वाली माँ होती तो मुझे पेट से ही परलोक पहुँचा देती। तेरा किन शब्दों में आभार व्यक्त करूँ माँ। अगर तू नहीं होती तो मैं दुनिया भी नहीं देख पाता। आज जन्म लेने के बाद इस धरती पर जो श्वाँस ले रहा हूँ वो तेरी कृपा से ले रहा हूँ मैं चाहता हूँ मेरी पहली सांस मैने तेरे सान्निध्य में ली तो तेरी आखिरी सांस की घडी में, मैं तेरे साथ रहूँ।