दिव्य विचार: मां की महिमा निराली है- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: मां की महिमा निराली है- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि ऐसा भाव व्यक्त करो, इस दुनिया में पहली सास माँ मैंने तेरे सामने ली, तेरी कृपा से ली, मैं चाहता हूँ आखिरी सांस तक तेरा साथ बना रहे, जब तक तेरी आखिरी सांस रहे मैं तेरे सामने रहूँ। ये भाव प्रकट करो क्या सोच बनती जा रही हैं। विवेकानंदजी से किसी ने पूछा? वो अपनी माँ को बहुत मान देते थे पूछा- कि आखिर माँ को इतना महिमा मंडित करने की क्या जरूरत है, उन्होंने कहा कि तुम्हारे सवाल का उत्तर बाद में दूँगा, उससे बोला एक पत्थर पड़ा था पाँच सेर का बोले, इस पत्थर को अपने पेट पर बाँधों और नौ घंटे के बाद मेरे पास आओ। मैं फिर जवाब दूँगा। वो पत्थर बाँधा, पाँच सेर का पत्थर बाँधा, थोड़ी असुविधा हुई घंटे भर बाद उस पत्थर को उतार कर अलग कर दिया और कहा कि स्वामी ये पत्थर मैं नहीं बांध सकता। मैं ये पत्थर धारण नहीं कर सकता, मुझे बहुत असुविधा हो रही है, चलने-फिरने में, उठने-बैठने सब में, आप तो मेरे सवाल का जवाब दे दो। विवेकानन्द जी ने कहा यही तो तेरे सवाल का जवाब है कि तू पाँच सेर का पत्थर नौ घंटे भी अपने पेट पर नहीं रख सका और तेरी माँ ने तेरे पाँच सेर का वजन नौ माह तक अपने पेट में रखा, सोच ले तेरी माँ की क्या महिमा है। आज संतान को जन्म देना कोई छोटी मोटी बात नहीं हैं। संतान को जन्म देना एक बहुत बड़ी साधना है और आज के दौर में तो और ज्यादा हो गया। पुराने समय में तो लाइफ स्टाइल अलग होती थी। माताएँ काम करते-करते संतान को जन्म दे देती थी। अब तो सिस्टम बदल जाने और बिगड़ जाने के कारण बदली हुई जीवन शैली के कारण बच्चे को जन्म देने के लिए कई-कई माताओं को बेडरेस्ट लेना है, कम्पलीट । क्यों? आखिर ऐसा वो क्यों कर रही हैं। घूमना, फिरना, बैठना, उठना, चलना, खाना, पीना सबमें संयम, आखिर क्यों? पेट में पलने वाले बच्चे के खातिर। इसलिये मैं कहता हूँ संतान को जन्म देना कोई सांसारिक क्रिया मात्र नहीं, एक साधना है जिसे केवल एक माँ कर सकती हैं।