दिव्य विचार: संसार की वास्तविकता को पहचानो-:मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: संसार की वास्तविकता को पहचानो-:मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि आज तीसरी भावना है संसारभावना। कवि ने इन दो पंक्तियों के माध्यम से संसार की वास्तविकता का चित्र खींचा है। संसारभावना का कुल मतलब इतना ही है कि संसार की वास्तविकता को पहचानो। जिस संसार में तुम जी रहे हो हकीकत में वह संसार है क्या ? आज हर प्राणी संसार में अपने तरीके से जीता है, और अपना-अपना रोना भी रोता है। संत कहते हैं थोड़ी अपनी गहरी निगाह से संसार को देखने की कोशिश करो। समझ में आयेगा कि संसार की नियति ही यही है, कि जो भी आता है उसे केवल कष्ट मिलता है। संसार में रोने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। संसार शोकमय है। संसार में तुम जिसे भी देखोगे, जिसे भी टटोलोगे, जहाँ भी तुम्हारी निगाह जायेगी, वहाँ हर व्यक्ति के जीवन में, हर प्राणी के जीवन में दुःखों के अलावा कुछ है ही नहीं। दूसरे प्राणियों के जीवन को टटोल के देखो अथवा स्वयं के जीवन को टटोल कर देखो, अपने वर्तमान को देखो अथवा अपने अतीत को देखो। अपने इस मनुष्य जन्म को देखो अथवा इस जन्म के पीछे की कहानी को पलट कर देखो। तुम्हारा अतीत तुम्हें एक ही बात बताता है कि तुम्हारा जीवन हमेशा दुःखमय रहा है। वस्तुतः संसार दुःख ही की पर्याय है। भगवान् महावीर कहते हैं- जन्म दुःख है, जरा दुःख है, रोग दुःख है, मरण दुःख है। संसार दुःखमय है। संसार में तुम्हें कहीं सुख दिख ही नहीं सकता। यह संसार की वास्तविकता है। इसे पहचानने की कोशिश करो। संसार के दुःखों का चिन्तन करने की क्या ज़रूरत है ? अपने दुःखों को भुलाओ। दुःखों का चिन्तन करने से तो मन में हताशा भरेगी। मन में निषेधात्मक विचार भरेंगे। हमारा जीवन बोझिल होगा। ऐसा बोझपूर्ण जीवन जीने का संदेश तो अध्यात्म कभी देता ही नहीं। फिर आप आज कौन सी गाथा छेड़ रहे हैं ? संत कहते हैं - संसार की असारता और संसार के दुःखमय स्वरूप को जानने का उद्देश्य यह नहीं कि हम संसार को दुःखमय जानकार उससे भागने की कोशिश करें। अपने जीवन से हताश हो जायें।