दिव्य विचार: किसी भुलावे में मत रहो....- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि मनुष्य की दशा उस हिरनी की तरह है, जिसके सामने एक शिकारी खड़ा है, उसके हाथ में बाण है। उसके पाश्व में जाल बिछा हुआ है, पीछे अग्नि दहक रही है, एक तरफ शिकारी कुत्ते हैं और हिरनी के बच्चे बीच-बीच में आने के कारण जिसकी गति मंद हो रही है। हिरनी के पेट में गर्भ है। गर्भ के भार के कारण जो ठीक से चल भी नहीं पा रही है। हिरनी अपने पति हिरन से पूछती है कि - मैं कहाँ जाऊँ? ऐसी विषम स्थिति संसार के प्राणी की है। वह सब ओर से मौत से घिरा हुआ है, मृत्यु के बीच में भी अपने आपको संभालना कैसे संभव है ? यह तभी संभव होगा, जब हम मृत्यु की अनिवार्यता को स्वीकार कर मृत्यु से भयभीत होना छोड़ दें। मृत्यु के स्वागत में तैयार और तत्पर हो जायें। उसको स्वीकार करें। आना है तो आओ। मैं तो तुमसे घबराने वाला नहीं हूँ। मैं तुम्हारे स्वागत में तैयार हूँ। लेकिन क्या करें, मनुष्य की स्थिति बड़ी विचित्र है, मृत्यु जो जीवन का अनिवार्य सत्य है उसे झुठलाने की कोशिश करता है। यह बात और है कि ऊपरी तौर पर वह कहता है कि मुझे एक दिन मरना है लेकिन अन्तर्मन से उससे पूछा जाये तो मौत को वह मानता जरूर है, किन्तु स्वीकारता नहीं है। उसकी यह मान्यता है कि एक दिन मैं मरूंगा। पर अन्दर से वह कहता है कि मैं अभी नहीं, अभी तो दूसरे लोग मरेगे, मेरा नम्बर तो बाद में आयेगा। मैं मरूँगा नहीं, मैं मरण को टाल सकता हूँ। संत कहते हैं - यही तो तुम्हारी बहुत बड़ी भूल है, इस भूल को जब तक तुम संशोधित नहीं कर लेते, अपने जीवन का कल्याण नहीं कर सकते। मृत्यु को टालने से वह टल नहीं सकती। वह तो अटल है। तुम उससे जितना दूर भागोगे वह तुम्हारे पास आयेगी चाहे कितना भी बड़ा व्यक्ति क्यों न हो, आज तक मृत्यु से वह बच नहीं सका। संसार में तुम कहीं भी चले जाओ मृत्यु से बचा नहीं जा सकता। हम आपकी बात तो जाने दीजिये, सुर-असुर भी जितने हैं, उनको भी एक दिन अपनी काया को छोड़ना पड़ता है। मणि, मन्त्र, तन्त्र, औषधि कुछ भी हम कर लें, वे हमें मौत से नहीं बचा सकती।