दिव्य विचार: अपने दुखो से व्याकुल न हों- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: अपने दुखो से व्याकुल न हों- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि संसार का दुःख कम नहीं हो सकता, लेकिन क्या करें ? आज के लोग इस तरह की बातें बहुत कम सोचते हैं। कई-कई बार लोग इस तरह की बातें करते हैं - क्या करूँ महाराज ? संसार में हमारे जीवन में जो अभाव है, उसको देखकर बहुत उकताहट होती है, लगता है संसार से ही दूर हो जायें तो अच्छा है । जब हम अपने शरीर की बीमारी को देखते हैं तो मन बड़ी हताशा से भर जाता है। बीमारी से मुक्ति का क्या उपाय है ? इससे बेहतर है आत्महत्या कर लें। संसार से चले जायें। संपत्ति की अल्पता कभी दिखायी देती है, तो मन में यह बात आती है कि मुझसे बड़े- बड़े धनपति लोग हैं, इनके बीच आखिर मैं अपना जीवन कैसे जियूँ ? अपने सम्बन्धों और ख्याति को देखते हैं तो ऐसा लगता है कि मैं बहुत पीछे हूँ। जब तक उनको पा ना लूँ, तब तक मेरा जीवन अधूरा रहेगा। संत कहते हैं - यही तुम्हारे जीवन की अज्ञानता है। यदि इस तरह से तुम देखते रहोगे तो तुम अपने जीवन को कभी सुखी नहीं बना सकते। तुम्हारा जीवन गहन हताशा से भर जायेगा। हर प्रकार के नकारात्मक विचार तुम्हें प्रभावित करेंगे। उन विचारों का असर यह होगा कि तुम अपने जीवन की क्षमताओं को भी खो बैठोगे । संत कहते हैं - तुम्हारे जीवन में कितनी भी घातक बीमारी क्यों न आये, तुम यह सोचो कि कम से कम इस बीमारी को सहने की शक्ति तो मुझमें है। अस्पताल जाओगे तो देखोगे कि तुम्हारी बीमारी से हजार गुनी बीमारी दूसरे मरीजों में है। जो है उसे देखकर ज्यादा व्याकुल न हो। यह व्याकुलता तुम्हें दुःखी करेगी। इसके अलावा और कुछ नहीं होगा। तुम्हारे मन में जिस दिन अहंकार आने लगे उस समय अपने से नीचे वाले को देखो। आज तुम्हें जो बीमारी है, उससे भी भयंकर बीमारी वाले लोग हैं संसार में। तुम्हारा तो शरीर ही बीमार है, चल फिर तो रहे हो। दुनियाँ में ऐसे लोग भी हैं जिनके हाथ-पैर भी कटे हुये हैं, वह भी अपनी जिंदगी जी रहे हैं।