दिव्य विचार: बीमारी को मन पर हावी मत होने दो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: बीमारी को मन पर हावी मत होने दो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि इतना ही नहीं गलित कुष्ठ रोगी भी है, जिनके ऊपर मक्खी घूमती हैं, उसे भगाने में भी वे मजबूर हैं, वे भी अपनी जिंदगी को जी रहे हैं। तुम्हारे पास बहुत कुछ है। तुम्हारे लिये बीमारी है, तो बीमारी के उपचार की भी व्यवस्था है। पर दुनिया में तो ऐसे लोग भी हैं जो बीमार हैं, पर बीमारी का इलाज कराने की उनमें सामथ्र्य भी नहीं है। उनसे तो तुम बेहतर हो। तुम अपनी बीमारी का रोना रोकर तन की बीमारी को मन की बीमारी न बना लेना। तन की बीमारी का तो इलाज है पर मन की का कोई इलाज नहीं। इसलिये तन की बीमारी को मन पर हावी मत बनाओ। बीमार हो तो उसका इलाज कराओ। मगर इतना याद रखकर कि मैं जितना बीमार हूँ उससे बहुत ज्यादा बीमार दूसरे लोग हैं। यदि इतनी बात तुम्हारी समझ में आ जाये तो बीमारी में भी बीमारी तुम्हारा मन स्वस्थ बना रहेगा। यदि मन स्वस्थ हो तो आदमी कितना भी बीमार क्यों रहे, उसकी जिजीविषा हमेशा बनी रहेगी। और वह व्यक्ति अपने जीवन का उद्धार कर लेगा। एक व्यक्ति यह सोचकर रोना रोता है कि मेरे पाँव में पहनने के लिये जूते नहीं हैं। उसको उन व्यक्तियों को देखना चाहिये जिनके पास पैर ही नहीं हैं। कम से कम तुम उन व्यक्तियों से तो अच्छे हो, जिनके पास जूते पहनने के लिये पैर ही नहीं। लेकिन क्या करें ? आज का मनुष्य पैर होने के बाद पैर के सुख का भोग तो नहीं करता, अपितु जूते के लिये रोना रोता है। संत कहते हैं तुम्हें पैर मिले, यह क्या कम है ? इसका सुख भोगो, परमात्मा को बधाई दो। धन्यवाद दो कि, प्रभो ! तूने मुझे पैर दिये। यदि पैर सलामत रहेंगे तो मैं सब कुछ पा सकता हूँ। जूते न सही तो न सही। बिना जूते के तो काम चल सकता है। जब बिना पैर वाले जी सकते हैं तो बिना जूते के क्यों नहीं? ये देखने की कोशिश करो। संपदा की हानि जब तुम्हें सालती है तो ऐसा लगता है कि मेरे पास संपदा नहीं है। थोड़ा विचार करो, तुम्हारी संपत्ति की तुलना में दुनिया में ऐसे भी लोग हैं जिनके पास कुछ नहीं है।