दिव्य विचार: मन में हीन भावनाएं न लाएं- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: मन में हीन भावनाएं न लाएं- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि ऐसे भी बहुत से लोग होंगे, जिनके पास पेट भरने को भी पैसा नहीं है। सुबह खा लिया तो शाम का ठिकाना नहीं, शाम खा लिया तो सुबह का इंतज़ाम नहीं। तुम उनसे तो बहुत आगे हो। उसे देखोगे तो तुम्हारे मन में कभी हताशा नहीं आयेगी। अपने से आगे वाले को देखोगे तो तुम्हारे मन में आकुलता बनी रहेगी। हो सकता है तुम उस सीमा तक भी पहुँच जाओ तो भी तुम्हारे मन में चैन नहीं होगा। जो वर्तमान में है उससे यदि तुम्हें चैन नहीं, तो जो तुम पाओगे वह भी तुम्हें कभी संतोष नहीं दे सकता। इसलिये कभी भी ऊपर मत देखो। नीचे देखो। ऊपर देखने से हीनता की भावना आती है और नीचे देखोगे तो तुम्हें अपनी वास्तविकता का बोध होगा। तुम्हें लगेगा कि मैं बहुत अच्छा हूँ। संत कहते हैं - जब अभिमान उमड़े तो ऊपर देखो, हीनता आये तो अपने से नीचे वाले को देखो। अपने से ऊपर वाले को देखोगे तो तुम्हारा अभिमान क्षीण हो जायेगा। हीनभावना से ग्रसित हो नीचे वाले को देखोगे तो तुम्हें लगेगा कि मैं बहुत अच्छा हूँ। संतोष को प्राप्त करना चाहते हो, तो अपने मन को नकारात्मक भावना से बचाकर रखो, जीवन को हताशा और उदासी से बचा कर रखो। यदि तुम अपने से नीचे वाले को देखोगे तो, तुम्हें दिखेगा कि मैं संसार में बहुतों से बेहतर हूँ और जब तुम अपने आपको बेहतर महसूस करने लगोगे तो तुम्हें लगेगा कि सच में मैं बड़ा सुखी हूँ। यह सुख भी ऊपरी सुख है। अगर तुम अपने भीतर के आत्मिक सुख को देखोगे तो तुम्हें लगेगा कि इन सब बातों को देखने की जरूरत नहीं है। इन सब बातों को जानने की जरूरत नहीं है, क्योंकि बाहर के संयोग कभी सुख दे नहीं सकते और संयोगों को कभी पूरा किया नहीं जा सकता। संयोग कभी पूरे नहीं किये जा सकते। सांसारिक संयोगों को तो पूरा करना ऐसा है जैसे मेढकों को खुली तराजू पर तौलना। तौल सकते हैं खुली तराजू में मेंढकों को ? एक को रखो, फिर दूसरे को रखो तब तक पहला भागेगा। ऐसे ही संसार में हम एक अभाव को पूरा करते हैं और दूसरे अभाव को ले लेते हैं।