दिव्य विचार: धन और यश हमेशा नहीं रहते- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि सद्भाव को देखोगे तो तुम्हारा जीवन सुखी होगा। तुम सोचते हो - मेरा मकान ढंग का नहीं है, इसलिये मुझे कष्ट है। चलो ठीक है, आपका मकान पक्का और लेंटर वाला तो है। उनको देखो, जो फुटपाथ पर सोने को मजबूर उनसे तो तुम अच्छे हो। उनको तो टूटी छप्पर भी नसीब नहीं हुयी। तुम्हारा तो पक्का मकान पर क्या करें तुम्हें अपना मकान तो नहीं दिखता। पड़ोसी का चार मंजिला मकान दिखता है। पड़ोसी के चार मंजिला मकान को देखते हो तो हैं। तुम्हारा पक्का मकान भी तुम्हें दुःख देने लगता है। उस अभाव को मत देखो। सद्भाव को देखो। पद- प्रतिष्ठा-यश चाहते हो तो संसार में किसका यश स्थायी रहा है? आज यश है तो कल अपयश । चक्रवर्ती जैसे लोगों का भी यश स्थायी नहीं रहा। उन्हें भी करेंट लगा। लोगों का नाम मिटाना पड़ा, अपना नाम लिखने के लिये। फिर भी न वे चक्रवर्ती रहे और न उनका नाम रहा । तुम्हारा यश कहाँ से स्थायी रहेगा ? यश पाने की चाह न रखो। ऐसा काम करो कि तुम्हारा जीवन यशस्वी बने। महत्ता पाने की कामना मत रखो, महत्ता पाने की चाह मत पालो, ऐसा आचरण करो कि दुनिया तुम्हें महान् माने । सिर पर नहीं, दिल में बैठिये ऐसी कोई चाह मत करो, कि सब कोई तुम्हें महत्ता दें। ऐसा कुछ करो कि सब कोई तुम्हें मानने, स्वीकार करने लगें। ऐसा आचरण करो कि लोग तुम्हें सिर पर बैठाने को लालायित रहें। सिर पर बैठने की चाह कभी मत रखो। यह चाह रखोगे तो कभी कुछ नहीं मिलेगा। ध्यान रखो चाह से कभी कुछ नहीं मिलता। लोक में सम्पदा को वेश्या और कीर्ति को कुमारी कहा गया है। संपदा वेश्या है क्योंकि वह कभी किसी एक के पास नहीं रहती। रोज़ अपने पति बदलती है। आज इसके पास है तो कल किसी दूसरे के पास। रोज़ रोज़ अपने पति बदलती है। सम्पदा इसलिये वेश्या है। जबकि कीर्ति इसलिये कुमारी है कि जिसे कीर्ति चाहती है, लोग उसे नहीं चाहते और जो लोग कीर्ति को चाहते हैं, कीर्ति उन्हें नहीं चाहती। इसलिये कीर्ति का विवाह ही नहीं हो सका आज तक।