दिव्य विचार: पिता हमारे जीवन को संरक्षण देते हैं- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: पिता हमारे जीवन को संरक्षण देते हैं- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि भारतीय संस्कृति में माता और पिता को देवता के रूप में स्वीकार किया गया है। बचपन से हमें यह संस्कार दिया गया- मातृदेवो भव, पितृ देवोभव और यह कहा गया कि अपने माँ-बाप को माँ-बाप के रूप में ही नहीं, उनके भीतर देवत्व को देखने की कोशिश करो, क्योंकि आज हम जो कुछ भी हैं, माता-पिता की कृपा से ही है। हमारे शरीर के अंदर रहने वाला एक-एक बूँद खून भी उनकी ही कृपा का प्रसाद है, यही वजह है कि हमारी संस्कृति में माता-पिता को सर्वोच्च स्थान दिया गया हैं। जब गणेश और कार्तिकेय के मध्य श्रेष्ठ कौन, इसके चुनाव का प्रसंग आया तो कौन ब्रह्मांड की पहले परिक्रमा लगायेगा, कार्तिकेय तो अपने मयूर पर सवार होकर तीन लोक की सैर के लिये निकल गये लेकिन गणेश ने कुछ नहीं किया। अपने माता-पिता की परिक्रमा की और ब्रह्मांड की क्षण मात्र में सैर करने का श्रेय प्राप्त कर लिया और यह साबित किया कि माता-पिता में सारा ब्रह्मांड है क्योंकि इस ब्रह्मांड में हम आए हैं तो माता-पिता की कृपा से ही आए हैं। जितनी माँ की महिमा है, उतनी ही पिता की भी महिमा है। पिता के अभाव में माँ पुत्र को जन्म नहीं दे सकती। माँ जनम देती है और पिता हमें पूरे जीवन संरक्षण देते हैं। इसलिये पिता के प्रति भी हमारा वैसा ही बहुमान होना चाहिये, जैसा कि एक माँ के प्रति होता है। पिता को और माँ को विचारकों ने अलग-अलग तरीके से देखा है और एक विचारक ने लिखा- माँ परिवार का हृदय है तो पिता परिवार का मस्तक । हृदय शून्य व्यक्ति जी नहीं पाता अगर मस्तक खतम हो जाए कुछ मान नहीं रह पाता। मस्तक के अभाव में हमारा जीवन बिखर जाता तो हरपल है हमारे लिये पिता का संरक्षण भी चाहिये और माँ का साथ तो छाया की तरह चाहिये ही चाहिये। जीवन में आगे बढ़ने के लिये इन दोनों की बहुत बड़ी आवश्यकता है। आजकल ऐसा देखने में आ रहा है कि पितृत्व की आभा दिनों दिन क्षीण होने लगी है, पिता का गौरव दिनोदिन कम होता जा रहा है।