रामनगर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 11 माह से कर्मचारियों को वेतन के लाले

सतना | रामनगर क्षेत्र के रहवासियों के स्वास्थ्य का जिम्मा संभालने वाले कर्मचारियों की आर्थिक, समाजिक व पारिवारिक सेहत वेतन न मिलने से गंभीर होती जा रही है। हालात यह हैं कि जिन कर्मचारियों के बूते रामनगर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की चिकित्सा व्यवस्था निर्भर है उन्ही कर्मचारियों को पिछले कई महीनों से वेतन के लाले पड़े हुए हैं। कई कर्मचारियों को तो अप्रैल 2020 से वेतन नहीं मिली है। बेशक अनुशासन की डोर में बंधे कर्मचारी वेतन के मसले पर अपना मुखर विरोध प्रदर्शित न कर पा रहे हों लेकिन वेतन न मिलने से उनके परिवार की आजीविका संकट में पड़ गई है। सूत्रों की मानें तो ऐसा जिम्मेदारों की गैरजिम्मेदाराना हरकत के कारण हो रहा है। वेतन के अलावा भी रामनगर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में कई अनियमितताएं हैं जिन्हें लंबे अरसे से जमे चिकित्सक अंजाम दे रहे हैं। 

बढ़ रही नाराजगी  
बताया जाता है कि रामनगर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में बीते 6-7 सालों से पदस्थ डा. विनय  कुमार रवि इन विसंगतियों के लिए जिम्मेदार हैं। बताया जाता है कि अस्पताल में एक आयुर्वेद चिकित्सक की तैनाती कर डा. विनय  कुमार रवि मूड होने पर ही अस्पताल पहुंचते हैं, अन्यथा अस्पताल के निकट स्थित आवास पर ही मरीजों को बुलाकर देखते हैं। यहां तक कि कई मर्तबा ओपीडी में मौजूद मरीजों को भी उनके आवास पर ही दिखाना पड़ता है।  हैरानी है कि उन पर बीएमओ आलोक अवधिया भी अंकुश नहीं लगा पा रहे हैं। जब कभी तबादले की नौबत आती है तो अपने राजनीतिक आकाओं की मदद हासिल कर वह अपना कार्यस्थल परिवर्तन रद्द करा देते हैं। बहरहाल उनकी मनमानी से न केवल अस्पताल कर्मियों में गुस्सा है बल्कि  आम जनता भी आक्रोशित हो रही है। दिलचस्प बात यह है कि डा. विनय कुमार रवि की इस मनमानी पर कोई अंकुश लगाने वाला नहीं है। सूत्र बताते हैं कि डा. विनय कुमार रवि रामनगर में कई सालों से पदस्थ हैं।  

रोगी कल्याण समिति के कर्मचारी हलाकान 
स्वास्थ्य विभाग में कर्मचारियों के टोटे के चलते कई ऐसे काम हैं जिनके लिए रोगी कल्याण समिति (रोकस )के कर्मचारी तैनात किए जाते हैं। बेहद अल्प वेतन में कार्यरत रोगी कल्याण समिति के कर्मचारियों के बूते ही सामुदायिक स्वास्थय केंद्रों का संचालन सहजता से हो जाता है। रामनगर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भी ऐसे 9 कर्मचारियों की तैनाती की गई है। इन कर्मचारियों में से वार्ड सहायक देवेंद्र कुमार रवि व रामलाल कहार को 4 -4 हजार रूपए, पर्ची वितरक सलीम खान, प्रदुम साकेत व स्टोर सहायक धर्मेंद्र कुमार वर्मा को 25 -25 सौ रूपए, वाहन चालक सोहेल सिद्दिकी को 3 हजार रूपए, नरेंद्र कुमार रजक को 2350 रूपए , महिला सुरक्षा गार्ड द्रोपदी मिश्रा व पुरूष सुरक्षा गार्ड राजकुमार शर्मा को 2-2 हजार रूपए वेतन के तौर पर दिए जाते हैं, लेकिन इस मामूली वेतन को भी रोक रखा गया है। यदि स्टेट बैंक की एक जानकारी पर यकीन करें तो देवेंद्र कुमार रवि , सलीम खान, प्रदुम साकेत व रामलाल को अप्रैल 2020 से, द्रोपदी मिश्रा व राजकुमार शर्मा को मई 2020 से,  धर्मेंद्र कुमार वर्मा को जून से, नरेंद्र कुमार रजक को जुलाई से तथा सोहेल सिद्दिकी को अक्टूबर से वेतन नहीं मिली है। 

जिनके बूते अवार्ड वही दरकिनार 
अवार्ड मिलने के बाद भले ही स्वास्थ्य अधिकारियों की पीठ थपथपाई जाती हो लेकिन हकीकत यह है कि इसमें चिकित्सकों के अलावा सबसे बड़ा योगदान स्वीपर, वार्ड ब्वाय, नर्सेस, पैरामेडिकल स्टाफ, सफाईकर्मी आदि का सबसे ज्यादा रहता है लेकिन अवार्ड मिलते ही इन कर्मचारियों को दरकिनार कर दिया जाता है। इसका उदाहरण इसी बात से समझा जा सकता है कि इसके पूर्व जिला अस्पताल भी दो से तीन मर्तबा कायाकल्प अवार्ड हासिल कर लाखों की राशि हासिल कर चुका है लेकिन लाखों की इस राशि से कर्मचारियों को प्रोत्साहन राशि तक नहीं दी गई है।

तत्कालीन सिविल सर्जन डा.एसबी सिंह व डा. प्रमोद पाठक  के कार्यकाल में भी जिला अस्पताल को अवार्ड मिला लेकिन जिला अस्पताल के कर्मचारियों को प्रोत्साहन राशि अब तक नसीब नहीं हुई है। माना जा रहा है कि यदि कायाकल्प की अवार्ड राशि को सरकार के नार्म्स के अनुसार प्रोत्साहन राशि दी जाय तो कर्मचारियों की आर्थिक सेहत सुधर सकती है। 

तो कहां गई कायाकल्प की प्रोत्साहन राशि 
अस्पताल की साफ सफाई व उत्कृष्ट चिकित्सा सेवाओं के लिए दिए जाने वाले कायाकल्प अवार्ड का सारा श्रेय बेशक स्वास्थ्य अधिकारी लेते हों, लेकिन जमीनी सच यही है कि किसी भी अस्पताल की व्यवस्थाओं को यही कर्मचारी सुनिश्चित करते हैं। विगत वर्ष रामनगर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र को 10  लाख का अवार्ड मिला था तो इस मर्तबा 5 लाख का अवार्ड मिला था। सूत्रों के अनुसार कायाकल्प अवार्ड की राशि में तकरीबन 75 हजार की राशि प्रोत्साहन राशि होती है जो उन कर्मचारियों को दी जाती है जो कर्मचारी दिन रात एक कर अस्पताल की सेवाओं को बेहतर बनाते हैं।

यदि कर्मचारियों की मानें तो पिछली बार मिली 10 लाख की राशि में से उन्हें प्रोत्साहन के नाम पर एक धेला नहीं दिया गया है। दिलचस्प बात यह है कि आरटीआई के तहत इसकी जानकारी भी लेने का प्रयास किया गया कि आखिर कायाकल्प की राशि कहां और किस मद पर खर्च की गई? लेकिन अस्पताल प्रबंधन ने कोई जानकारी मुहैया कराने से इंकार कर दिया। अंतत: सीएमएचओ कार्यालय में भी सूचना के अधिकार के तहत आवेदन लगाया गया लेकिन जानकारी नहीं दी गई। जाहिर है कि जिम्मेदारों ने कायाकल्प की राशि को खुर्द-बुर्द कर लिया है जिससे वे यह जानकारी देने से कतरा रहे हैं कि कायाकल्प की राशि में उन्होने कहां ठिकाने लगाई है? 

यह बात सही है कि रामनगर के ‘रोकस’के कर्मचारियों को वेतन में दिक्कत है। दरअसल उन्हें उसी पैसे से वेतन दी जाती है जो पैसा मरीजों से पर्ची वगैरह का लिया जाता है। चूंकि कोविडकाल में मरीजों से पैसा लेना बंद कर दिया गया था जो फिर नवंबर से प्रारंभ हुआ है। हम इसे दिखवाते हैं। जहां तक सवाल कायाकल्प के प्रोत्साहन राशि की है तो उस संबंध में मुझे जानकारी नहीं है। नार्म्स के अनुसार कुछ राशि प्रोत्साहन के तौर पर दी जाती है। यह कितनी है और कितनों को मिली या कितनों को क्यों नहीं मिली, इसकी जानकारी लेकर ही मैं कुछ बता सकूंगा। 
डा. एके अवधिया , सीएमएचओ