दिव्य विचार: मनुष्य को जीवन को सार्थक बनाएं- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि जिस इमारत की नींव मजबूत होती हैं, वह इमारत कितनी भी बड़ी हो जाये कोई आघात नहीं पहुँचता । वह कभी खंडहर में नहीं बदलती और जिसकी नींव कमजोर होती है, वह कितनी ही आकर्षक रंगी-पुती हो, ज्यादा दिन टिकती नहीं, सब खंडहर बन जाती हैं। आज ये जो खंडहर देख रहे हैं न, ये सब इनकी कमजोर नींव का प्रतीक हैं; जिनकी नींव मजबूत है वे शतायु होने के बाद भी सीना तानकर चल रहे हैं। हमारे यहाँ ऐसी व्यवस्था थी कि फाऊंडेशन को एकदम मजबूत बनाकर चलिये। आज कल उन सब चीजों की उपेक्षा होने लगी हैं। लोग इनका विचार ही नहीं करते। शील, संयम, सदाचार का हमारे जीवन में क्या महत्व है वो सब भुलाना शुरू कर दिये। बदली हुई शिक्षा व्यवस्था ने तो और बँठाढार कर दिया। पहली अवस्था ज्ञानार्जन की, बचपन ज्ञानार्जन के लिये, जवानी धनार्जन के लिये और बुढ़ापा को पुण्यार्जन के लिये रिजर्व करके रखने की बात है। ब्रह्मचर्य आश्रम, ब्रह्मचर्य के साथ ज्ञान का उपार्जन करते हुए आगे बढ़े, फिर दूसरे क्रम में तुम गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करो, विवाह के बंधन में बंधो, सदा स्वदारसन्तोष व्रत का पालन करो। एक सदाचारी मनुष्य के रूप में जिओ, संयम की मर्यादा में बंधकर के जिओ और अपनी जीविका की निर्वाह के लिये धन पैसे का उपार्जन करो, अपनी गृहस्थी को आगे बढ़ाओं, संतति का विकास करो, संपत्ति का उपार्जन करो। रति का सुख लो और अंत में विरक्ति की और मुड़ जाओं, ये है गृहस्थ आश्रम । संपत्ति, संतति, रति और अविरति चार प्रकारों के साथ आगे बढ़ते चलो। गृहस्थ आश्रम में प्रवेश किया लेकिन जिस दिन गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करो, उसी दिन तय कर लो, मुझे कब तक सक्रिय गृहस्थी में रहना है। गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने का लक्ष्य भोगों में निमग्न होना नहीं हैं, मुझे अपने मनुष्य जीवन को सार्थक बनाना है; एक सीमा तक मुझे गृहस्थी में रहना है, अंत में अपने मनुष्य जीवन को सार्थक और सफल बनाना है।