दिव्य विचार: वृद्धावस्था में इतनी चिंता काहे की- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: वृद्धावस्था में इतनी चिंता काहे की- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि वृद्धावस्था की दहलीज पर तुमने पाँव रख दिया है या बुढ़ापे के दौर से गुजर रहे हो। अब विचार करना है मुझे अपना जीवन कैसे जीना हैं। बुढ़ापे में चिंता की बात तो बहुत दूर की है, बुढ़ापा आते ही चिंता हावी होने लग जाती है। और महाराज बुढ़ापा आने पर चिंता आती है यह तो बहुत दूर की बात, बुढ़ापे की चिंता जवानी में सताने लगती हैं। मेरे बुढ़ापे में क्या होगा। अभी तीन दिन पहले जब 'संबंध पिता-पुत्र' की चर्चा मैं कर रहा था। एक बत्तीस साल का युवक आया, बोला- महाराज हमारे माँ-बाप ने तो हमें संस्कार दिए, आज भी हम अपने माँ-बाप का ख्याल रखते हैं पर हमें इस बात की चिंता है कि मेरा बेटा हमारा साथ देगा कि नहीं देगा। अभी बत्तीस साल की उम्र है लेकिन चिंता किसकी हो रही है? बुढ़ापे की। मेरा बेटा मेरा साथ देगा कि नहीं देगा, बुढ़ापा आए जब चिंता सिर पर छाए ये बहुत दूर की बात है, जवानी में ही बुढ़ापे की चिंता सताए, भगवान ही जाने उसका क्या होगा? मैंने उससे कहा- भैया इतनी अपेक्षा ही मन में क्यों पालते हो, अपने आपको सँभालों और यह तय कर लो बुढ़ापा आये उसके पहले ही हम घर से निकल जाएगें, वैराग्य के रास्ते को अंगीकार कर लेंगे तो तुम्हें बुढ़ापे की चिंता करने की जरूरत ही नहीं होगी। बुढ़ापा में भी तुम जगत् पूज्य बन जाओगे। रास्ता हम कौन सा चुनते हैं। हमें ये विचार करने की जरूरत हैं। एक बात मैं आपको सबके विचार के लिये दे रहा हूँ जिनकी जवानी अच्छी कटती है, उनका बुढ़ापा अच्छा बीतता है और जो जवानी को गलत तरीके से जीते हैं उनका बुढ़ापा भी बुरा हो जाता हैं। भारत की संस्कृति में चार आश्रम की व्यवस्था बताई गई है। आश्रम, वानप्रस्थ आश्रम और सन्यास आश्रम ये चार आश्रम की परंपरा भारत में पुरातन काल से चलती आ रही थी। उस समय एक व्यवस्था थी यौवन में प्रवेश करने से पूर्व ज्ञानार्जन करो और ब्रह्मचर्य पूर्वक ज्ञानार्जन करो। जब तक कोई भी युवक-युवती ज्ञान का अर्जन करते थे, ब्रह्मचर्य आश्रम में रहते थे। वे शील-संयम का पालन करके अपने जीवन को आगे बढ़ाते थे।