दिव्य विचार: विकारों को मन पर हावी नहीं होने दें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि किसी म्यूजियम में आप जाते हैं वहाँ सजाकर के किसको रखा जाता हैं? देखों पुरानी चीजें दो तरह की होती है- एक किसी म्यूजियम में सजी हुई और एक कबाड़ खाने में पड़ी हुई दोनों जगह पुरानी चीजें मिलेगी। म्यूजियम में सलीके से सजाई गई वस्तु भी पुरानी हैं और कबाड़ में पड़ी हुई वस्तु भी पुरानी है। दोनों ही चीज पुरानी है। लेकिन एक का मूल्य है, एक का कोई मूल्य नहीं, तुम्हारी जिंदगी पुरानी हो रही हैं, अपनी फटी-पुरानी जिंदगी को म्यूजियम में सजाने लायक बनाओं; कबाड़ खाने में जाने लायक मत बनने दो। कैसा बना रहे हो? म्यूजियम में सजाकर सलीके से रखने लायक या कबाड़ खाने के ढेर में बदलने लायक ? अधिकतर लोग है जो कबाड़ खाने के लायक अपनी जिंदगी जीते हैं। बहुत विरले ही लोग है जो म्यूजियम में सजी वस्तु की तरह ऐन्टिक पीस बनते हैं। जिनका बुढ़ापा भी हर पल आनंद से भरता है और वह अपने जीवन की एक-एक सांस बड़े आनंद से जीते हैं, ऐसा वे ही कर सकते हैं जो बुढ़ापे में भी अपनी दुर्बलताओं को अपने पर हावी नहीं होने देते, जो विकारों को अपने मन ऊपर हावी नहीं होने देते और पूरी जिंदगी जिंदादिली के साथ जीते हैं। बुढ़ापे को मुझे कैसे जीना हैं? बुढ़ापा तो आ गया। नहीं आया है तो आ जाएगा। बूढ़ा होने का मतलब केवल तन से बूढ़ा होना नहीं हैं। हमारे यहाँ तीन प्रकार के वृद्ध बताएँ ज्ञान वृद्ध, अनुभव वृद्ध, वयोवृद्ध । साधुओं को ले लो तो तपो वृद्ध चार हो गये चार का काम्बीनेशन ही ठीक है। ज्ञान वृद्ध उम्र भले ही बहुत कम हो पर जो ज्ञान की प्रखरता को प्राप्त कर लिया हैं, जो ज्ञान के क्षेत्र में बहुत प्रौढ़ और परिपक्व हो गया, अल्पउम्र होने पर भी ज्ञान में वृद्ध है। यहाँ वृद्ध का अर्थ श्रेष्ठ और प्रधान हैं। अनुभव वृद्ध जिसका अनुभव बड़ा पुष्ट है, जिसके जीवन में खूब सारी अनुभूतियाँ जुड़ी हुई है, अपने जीवन के सारे उतार-चढ़ाव को नजदीकी से देखा है, जो अनुभव में परिपक्व बन गया है, वह अनुभव वृद्ध है।