अनशन पर बैठे अतिथि विद्वान, कर्मचारी संघ का मिला साथ

रीवा | अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय के डेढ़ सौ से अधिक अतिथि विद्वानों को पिछले सात महीने से मानदेय नहीं मिला है। पिछले तीन हफ्ते से ज्यादा वक्त से आंदोलनरत अतिथि विद्वानों ने अपना प्रदर्शन और व्यापक बनाने के लिए गुरुवार से क्रमिक अनशन प्रारंभ कर दिया है। अनशन के पहले दिन डॉ. विजय मिश्रा, डॉ. रूपेश द्विवेदी और डॉ. अंशू रानी शामिल हुए। इस दौरान अतिथि विद्वानों को विश्वविद्यालय के कर्मचारी संघ का भी साथ मिल गया। जिन्होंने कुलपति से बात करके अतिथि विद्वानों की मांग को जायजा होना बताया। गौर करने वाली बात यह है कि कोरोना काल में विश्वविद्यालय के अध्ययन-अध्यापन की बागडोर संभालने वाले अतिथि विद्वान अपने घर की आर्थिक स्थिति नहीं संभाल पा रहे हैं। 

जाहिर है कि सात महीने से एक भी रुपए न मिलने के कारण डेढ़ सौ से भी ज्यादा अतिथि विद्वान दो वक्त के भोजन के मोहताज हो गए हैं। इस माह की शुरुआत से आंदोलन को विवश हुए अतिथि विद्वानों की मांग पूरी करने के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन आनाकानी करता आ रहा है। पहले वित्त नियंत्रक के छुट्टी से लौटने का आश्वासन देकर मांग को टाला गया और बाद में यह फैसला ईसी को देने के नाम पर अतिथि विद्वानों को रोककर रखा गया। मगर गेस्ट फेकेल्टीज की मांग अब तक पूरी नहीं की जा सकी। बल्कि दो महीने का मानदेय जारी कर मामले को निपटाने का प्रलोभन देने का काम किया जा रहा है।

व्हीसी ने ईसी के लिए जारी की तीन तिथियां
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक अतिथि विद्वानों के क्रमिक अनशन के दौरान दो बार कुलपति ने अतिथि विद्वानों के पदाधिकारियों को बुलाया। पता चला है कि कुलपति ने ईसी सदस्यों को बैठक में शामिल होने के लिए तीन तारीखें जारी की हैं। 29, 30 और 31 दिसम्बर के बीच जिस तिथि में सभी ईसी सदस्य राजी हो जाते हैं उस दिन कार्य परिषद बैठक आयोजित होगी और अतिथि विद्वानों के मुद्दे पर निर्णय लिया जाएगा।

ज्ञात हो कि इससे पहले भी आपात ईसी बुलाई गई थी मगर कोरम पूर्ति के अभाव में यह संभव नहीं हो सकी। गौर करने वाली बात यह है कि विश्वविद्यालय अगर यह फैसला ईसी सदस्यों के हवाले कर रहा है तो गत ईसी बैठक में सदस्यों ने अतिथि विद्वानों की मांगों को पूरा करने का निर्देश जारी किया था। जिस पर वित्त नियंत्रक ने ईसी को यह हक न होने की टीप दे दी। समझ से परे बात यह है कि अगर विश्वविद्यालय की सबसे बड़ी बाडी जो कि कार्य परिषद होती है उसे अतिथि विद्वानों के मानदेय के संबंध में निर्णय लेने का अधिकार नहीं है तो दोबारा से ईसी के पास यह मुद्दा क्यों प्रस्तुत किया जा रहा है।