हैण्डपम्पों की मरम्मत के नाम पर जमकर चल रहा फर्जीवाड़ा

रीवा | जिले में हैण्डपम्प की मरम्मत के नाम पर बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा किया जा रहा है। पीएचई विभाग के आला अफसर ठेकेदारों से साठगाठ करके शासन को काफी नुकसान पहुंचा रहे हैं। बताया गया है कि फर्जी लेबर सीट के आधार पर ठेकेदारों को लाभ पहुंचाया जाता है। सोचने वाली बात यह है कि ठेकेदारों द्वारा पीएचई के मैकेनिकों को वाहन नहीं दिया जाता और न ही लेबर दिए जाते हैं। बावजूद इसके अधिकारियों द्वारा फर्जी सीट पर हर माह भुगतान किया जाता है। ऐसा माना जा रहा है कि यह खेल 2018 से चल रहा है।
ज्ञात हो कि गत वर्ष जिला पंचायत की सामान्य सभा की बैठक में ठेकेदारों के भुगतान रोकने का आदेश जारी हुआ था मगर अधिकारियों ने चहेते ठेकेदारों को भुगतान कर डाला। ऐसा बताया गया है कि जिले के कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में अभी से पेयजल की समस्या प्रारंभ हो गई है। सिंचाई के लिए ट्यूबवेलों का धड़ल्ले से इस्तेमाल हुआ जिसके कारण पंपों ने जवाब देना शुरू कर दिया है। कुछ हैण्डपम्पों में कभी पानी आता है तो कभी नहीं आता। तो कुछ जलस्तर गिरने से बंद हो गए हैं। हैरानी की बात यह है कि इसकी सूचना विभाग को देने के बाद भी खराब हैण्डपम्पों की मरम्मत नहीं हो रही है। आने वाले महीनों में ऐसे ही नजरअंदाज किए गए हैण्डपम्पों की संख्या हजारों पहुंच जाएगी और यही लापरवाही हर साल की तरह जलसंकट का रूप ले लेगी।

हर विकासखण्डों में होने चाहिए 12 मजदूर
नियमानुसार हर विकासखण्ड में 10 से 12 मजदूर हैण्डपम्प की मरम्मत करने के लिए होने चाहिए। मगर ठेकेदारों द्वारा सिर्फ तीन-चार मजदूर ही रखे गए हैं। अगर कार्य के दौरान कोई मजदूर घायल हो जाता है तो इसकी जिम्मेदारी लेने वाला कोई नहीं रहता। ऐसा बताया गया है कि किसी भी ब्लॉक में श्रमिकों की बीमा कॉपी जमा नहीं की गई है। 

जहां दिया ठेकेदारों को काम वहां नहीं होती मरम्मत
ऐसा देखा गया है कि जिन जगहों पर ठेकेदारों को हैण्डपम्प की मरम्मत करने का काम दिया गया है वहां सुधार नहीं होता। जिले के जवा, गंगेव, रीवा, नईगढ़ी, त्योंथर, सिरमौर, हनुमना, रायपुर में हैण्डपम्पों के संधारण का काम ठेके पर दिया गया है। नियमानुसार योजना के तहत विभाग द्वारा सामग्री व मैकेनिक दिया जाना चाहिए। जबकि सामग्री ले जाने के लिए वाहन व हैण्डपम्प खोलने व पम्प निकालने के लिए मजदूर ठेकेदार द्वारा उपलब्ध कराए जाते हैं। मगर यहां हैण्डपम्पों के सुधार के लिए ठेकेदारों द्वारा लेबर व वाहन नहीं दिया जाता।

शिकायत होने पर विभागीय मैकेनिकों को अपने वाहन से जाना पड़ता है और स्थानीय लोगों की मदद लेकर हैण्डपम्प सुधार कार्य होता है। बताया गया है कि लेबर व वाहन के नाम पर हर विकासखण्ड में प्रति माह भुगतान किया जाता है। ऐसा बताया गया है कि ठेकेदारों द्वारा हैण्डपम्प की मरम्मत के लिए वाहन नहीं दिया जाता मगर ठेकेदारों ने कुछ वाहन रखे हुए हैं जिनका बीमा, फिटनेस कुछ भी नहीं है। यहां तक कि जो मजदूरों से काम लिया जाता है उनका पंजीयन भी श्रम विभाग में नहीं है। 

सुधारते हैं एक बताते हैं दस
विभागीय सूत्रों की मानें तो प्रति हैण्डपम्प सुधार के लिए ठेका कंपनी को 11सौ रुपए दिए जाते हैं और छुटपुट सुधार के लिए 535 रुपए। जहां हैण्डपम्प बनाया जाता है वहां के लोगों का पंचनामा जरूरी होता है। ठेकेदार द्वारा एक दिन में सिर्फ एकाध हैण्डपम्पों की मरम्मत जनसहयोग से की जाती है मगर फर्जी पंचनामा तैयार कर दस से पन्द्रह हैण्डपम्पों की मरम्मत की गई है यह दर्शाया जाता है। प्रतिदिन 10 से 15 हजार का काम दिखाकर ठेकेदार महीने में लाखों रुपए कमा लेते हैं। जिले के नौ विकासखण्डों की बात करें तो हर महीने 30 से 35 लाख रुपए दिए जाते हैं। सवाल यह उठता है कि अगर संविदाकारों को हैण्डपम्पों की मरम्मत का भुगतान किया जाता है तो हैण्डपम्पों से पानी क्यों नहीं निकलता। ठेकेदारों के खिलाफ कभी कार्रवाई नहीं होती क्योंकि अधिकारियों की इसमें मिलीभगत रहती है।