बिना लायसेंस संचालित हो रही हैं 36 पेयजल फैक्ट्रियां
रीवा | जिले में अमानक पानी का कारोबार वर्तमान में सबसे बड़ा मुनाफे का धंधा बनकर उभरा है। यही वजह है कि जिले में पाउच, जार, बोतल बंद पानी और डिब्बों में पानी पैक करने की करीब 40 फैक्ट्री चालू हो चुकी हैं। खास बात यह है कि इनमें मात्र कुछ का ही लायसेंस है, शेष फैक्ट्री बैगर लायसेंस अमानक पेयजल के व्यापार में लगी हैं। लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने वाली ज्यादातर फैक्ट्रियां प्रशासन की नाक के नीचे संचालित हैं।
लेकिन मुनाफे के धंधेबाजों के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं होती। जिससे हर साल तीन से पांच नई फैक्ट्री खुल रही हैं। शुद्धता और स्टैण्डर्ड पानी का दावा करने वाले इन संयंत्रों से नदी, नाले, तालाब, पोखर और बोरिंग से उपलब्ध पानी पाउच, बॉटल, जार, डिब्बा में भर-भरकर बेचा जा रहा है। आलम यह है कि खाद्य औषधि विभाग की उदासीनता के चलते रोजाना जिले भर में 5 से 8 लाख लीटर अमानक पानी की बिक्री होती है। विभाग की मानें तो अकेले 20 लीटर वाले डिब्बों से ही प्रतिदिन 2 लाख लीटर पानी की खपत हो रही है।
इनके पास है लायसेंस
जिले में पानी कारोबार में लगे कारखानों में से केवल 4 के संचालकों द्वारा खाद्य औषधि विभाग से लायसेंस लिया गया है। इनमें दो उद्योग विहार चोरहटा में खुले हैं, जबकि एक भगवान शीत भण्डार कॉलेज रोड और चौथी फैक्ट्री रायपुर कर्चुलियान में स्थापित है। बताया जाता है कि एस एक्वा चोरहटा उद्योग विहार, प्योर जल के नाम से पाउच, बाटल तैयार करता है। इसी उद्योग विहार क्षेत्र में स्थापित एसएम एक्वा एक्टिव ब्राण्ड से पानी का उत्पादन करता है। जबकि भगवान शीत भण्डार, अमृत नाम से पैकिंग ड्रिंकिंग वाटर का कारोबार होता है। इसी तरह रायपुर में मां गायत्री पैकिंग ड्रिंकिंग वाटर फैक्ट्री से अम्बर नीर नामक ब्राण्ड से पानी तैयार कर बेचा जाता है।
नहीं होता सेम्पल चेक, जार में नल का पानी
मिनरल व ड्रिकिंग वाटर का टैग लगाकर बेचने वाले पानी पाउच संचालक नियमों को धता बता रहे हैं। कायदे से सभी फैक्ट्रियों में कैमिस्ट व माइक्रोबायोलाजिस्ट की नियुक्ति की जानी चाहिए। हर दिन पानी के सेम्पलों की जांच फैक्ट्री में करने का भी नियम है। इतना ही नहीं हर महीने कंपनी के पानी का सेम्पल जांच के लिए भोपाल लैब में भेजी जानी चाहिए। इसी जांच के आधार पर इन कंपनियों का लाइसेंस बरकरार रहता है। लेकिन इन नियमों पर अमल नहीं किया जा रहा है। हद तो यह है कि लोग जिसे शुद्ध पानी समझ कर हर महीनों हजारों रुपए जार का बाटल खरीदने में खर्च कर रहे हैं। उन्हें यह जान कर आश्चर्य होगा कि इसकी प्योरिटी को लेकर कोई नियम कायदे ही नहंी बने हैं। यही वजह है कि सप्लायर सीधे टंकी व बोर का पानी घरों व दुकानों में सप्लाई कर रहे हैं।
रिपोर्ट आने तक बदल जाता है ब्रांड
खाद्य औषधि विभाग का कहना है कि अवैध तरीके से चल रही फैक्ट्रियों पर कार्रवाई के लिए कमेटी बनी है। जिसके माध्यम से सेम्पल लेकर भोपाल लैब भेजा जाता है। लेकिन जब तक पानी के स्टैण्डर्ड रिपोर्ट आती है तब तक संचालक ब्राण्ड बदल देते हैं। यही वजह है कि इन पर प्रभावी कार्रवाई नहीं हो पा रही है। मिनरल वाटर बेचने वाली कंपनियां पैकिंग में हेरफेर करती है। डिमांड की पूर्ति के लिए कई महीने पहले ही पैकिंग शुरू कर दी जाती है। पैक किए गए वाटल में आगे की मैनुफैक्चरिंग डेट डाल दी जाती है। कई महीने पहले पैक की गई में दो दिन बाद ही मैनुफैक्चरिंग डेट डाल दी गई। यही नहीं कई पाउच में अत्यंत छोटे अक्षरों में पीने योग्य नहीं है भी लिखा होता है। लेकिन यह सामान्य नजर से नहीं देखा जा सकता।
यह बात सही है कि अमानक पानी बनाकर बेचने की अवैध फैक्ट्रियां बहुत हैं। उन पर कार्रवाई होती रही है लेकिन अंकुश नहीं लगा है। केवल चार लायसेंसधारक हैं। सेम्पल की रिपोर्ट भोपाल से लेट आती है और इस बीच फैक्ट्री वाले ब्राण्ड बदल देते हैं। जिससे प्रभावी कार्रवाई नहीं हो पाती। हाई टीडीएस का पानी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।
साबिर अली, खाद्य औषधि अधिकारी