मझगवां-चित्रकूट वन परिक्षेत्र में दर्जनभर बाघों के अलावा जवां हो रहे 8 तेंदुए

सतना | दर्जनभर बाघों की दहाड़ से गूंज रहे मझगवां-चित्रकूट के जंगलोें में विभाग का दावा है कि  वन परिक्षेत्र के यूपी से लगे कालिंजर इलाके में आठ तेंदुओं का परिवार भी जवान हो रहा है। फर्क सिर्फ इतना है कि, दोनों प्रजातियों के वन्य जीवों ने रहवास की अनुकूलता की  दृष्टि से अपने ठिकाने अलग-अलग बना रखे हैं। स्थानीय लोगों का दावा है कि, विगत सप्ताहभर पहले ही तेंदुआ के दो शावक मादा के साथ देखे गए हैं। लेकिन, जहां तक बाघों के देखे जाने का सवाल है काफी लंबे समय से उन्हें नहीं देखा गया है। अलबत्ता सरभंगा में जरूर यदा-कदा एक बाघ नजर आता है। जो मंदिर-आश्रम और घोड़ा देवी मंदिर के इर्दगिर्द घूमता पाया जाता  है।

मझगवां, सरभंगा, चित्रकूट और धारकुंडी के वन अपेक्षाकृत अधिक घने, छायादार और बाघों के स्वभाव और शिकार के अनुकूल होने से यहां बाघों का कुनबा स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है। यही कारण है कि, अक्सर वाहनों की आवाजाही और शोरगुल से दूर वनमार्ग  में बाघों के देखे जाने के दावे किए जाते रहे हैं। बाघों की मौजूदगी की घटनाएं कभी-कभी गावंों में भी पाई जाती है। लेकिन, भीड़-भाड़ वाले इलाके में कम ही दिखाई देते हैं।

इसका एक मात्र उदाहरण पिछले साल का है जब बाघ-बाघिन का एक जोड़ा जंगल से निकलकर मझगवां-सतना मुख्य मार्ग पर सप्ताह भर तक अठखेलियां करता रहा। सड़क पर वाहनों का जाम लग गया। लोगों के मनोरंजन और वीडियोग्राफी से परेशान होकर जोड़ा हजारा नाला होते हुए जंगल में गायब हो गया उसके बाद कभी इस तरह नजर नहीं आया।  गाहे-बगाहे बाघों को चितहरा रेलवे ट्रेक, धारकुंडी-मानिकपुर के रास्ते पर जरूर देखा गया।

जंगल के अधिकारी कहते हैं, बाघ जितना हिंसक और हमलावर जानवर है उतना ही शंतिप्रिय और एकांतप्रिय है। उसका सड़कों पर आना या शिकार करना जरूरत और संयोग पर निर्भर करता है। कई बार तो जंगल में बाघ और वनकर्मी या ग्रामीण अगल-बगल से निकल जाते हैं और पता भी नहीं चलता। 

अचानक बाघों के कम दिखाई देने पर अधिकारी कहते हैं कि, अभी जंगल में पानी की कमी नहीं है। विभाग ने भी वाटर टैंक बनवा रखे हैं इसलिए जानवर बाहर नहीं आ रहे। बताया गया है कि, मझगवां से सतना मार्ग पर एक किमी दूर पापरचुआ, वनमार्ग में कई ऐसे कुंड हैं जिनमें अभी भी पानी है। वैसे भी बाहर आने से  उनके शिकार का खतरा बढ़ जाता है। मझगवां-सरभंगा क्षेत्र के जंगलों में पन्ना टाइगर रिजर्व के बाघ-बाघिनों की आमद से ही बाघों का कुनबा बढ़ा है। अनुकूल परिस्थितियों के कारण प्रजनन को बढ़ावा मिला है। आज क्षेत्र में दर्जनभर बाघों का कुनबा आबाद है। बढ़ते हुए बाघों की सुरक्षा और निगरानी के लिए विभाग सीसीटीव्ही कैमरे भी लगवा रहा है।

तेंदुओं की मौजूदगी
जिले के जंगलों में तेंदुओं की मौजूदगी अलग-अलग परिक्षेत्रों में विभाग स्वीकार करता है। परसमनिया, पपरा पहाड़, मैहर-उचेहरा आदि। लेकिन मझगवां के वनाधिकारी आठ तेंदुओं का बड़ा परिवार यूपी से लगे कालिंजर के पास कानपुर चकरानाला के पास बता रहे हैं। इसके अलावा सप्ताहभर पहले बरौंधा में रात नौ बजे एक तेंदुआ देखा गया था। 

सेंचुरी अभयारण्य के लिए बजट नहीं
लगभग दो साल पहले मझगवां-चित्रकूट वन परिक्षेत्र में पन्ना टाइगर रिजर्व, रानीपुर अभयारण्य मानिकपुर की सीमा तक के वन क्षेत्र को शामिल करते हुए मझगवां सेंचुरी अभयारण्य को विकसित करने का प्रस्ताव केंद्र सरकार और वन मंत्रालय को भेजा गया था। प्रस्ताव विभागीय जानकारी के अनुसार अभी भी लंबित है। बताया गया है कि, विभाग और सरकार के पास बजट का भाव है। ऐसे में जहां जिले की एक बड़ी परियोजना अटक गई है वहीं लगातार बढ़ते बाघों की सुरक्षा के लिए भी गभीर खतरा हो रहा है। गौरतलब है कि, प्रस्तावित अभयारणय को लेकर जनप्रतिनिधियों ने पत्र व्यवहार भी किया लेकिन, संतोषजनक जवाब नहीं मिला।