दिव्य विचार: सम्पन्नता के साथ उदारता लाएं- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि धन का त्याग करने से पहले स्व का अनुग्रह होगा। धन की आसक्ति कम होगी, अभिमान घटेगा, तुम्हारे अन्दर उदारता आएगी, करुणा आएगी और पाप का प्रक्षालन होगा। ये स्व का अनुग्रह है। तुम्हारी प्रतिष्ठा बढ़ेगी ये स्व का अनुग्रह है, कीर्ति बढ़ेगी ये स्व का अनुग्रह है। जो धनवान व्यक्ति कंजूस होता है दुनिया उसको गाली देती है और जो धन-सम्पन्नता के साथ उदारता अपनाता है दुनिया उसे अपने हृदय में विराजती है। क्या चाहते हो स्व का अनुग्रह और पर का अनुग्रह? तुम्हारे द्वारा जोड़े गए धन से समाज का कल्याण हो, धर्म की प्रभावना हो, संस्कृति की रक्षा हो, राष्ट्र का उत्थान हो और मानवता की सेवा हो। ये पर का अनुग्रह किससे हुआ? संग्रह से अनुग्रह। अगर संग्रह किया है तो अनुग्रह करो। अगर संग्रह ही करके रख लोगे तो वह परिग्रह बन जाएगा। परिग्रह क्या है? पाप। पाप ही नहीं 'परिग्रहो विग्रहहेतुः । परिग्रह सारे झगड़ों का मूल है, जड़ है। जहाँ परिग्रह है वहाँ झगड़ा है, झंझट है, अशांति है, दुख है, उद्वेग है, पीड़ा है और परिताप है। तुम जितना परिग्रही बनोगे तुम्हारे जीवन में उतनी जटिलता और अशांति आएगी। मैं एक बात कहता हूँ संग्रह के साथ जहाँ वितरण है वहाँ आनन्द है और जहाँ केवल संग्रह है वहाँ बहुत गड़बड़ है। आप देखो नदियों का पानी मीठा होता है और सागर का पानी खारा। आखिर ऐसा क्यों कभी आपने विचार किया? नदियों का पानी मीठा और सागर का पानी खारा केवल इसलिए होता है क्योंकि नदियाँ अपने पास कुछ भी संग्रहित करके नहीं रखतीं, सब बाँट देती हैं और सागर सब कुछ अपने पास संग्रहित करके रखता है। मैं एक सूत्र देता हूँ जहाँ केवल संग्रह है वहाँ खारापन है और जहाँ वितरण है वहाँ मिठास है। जीवन में मिठास लाना चाहते हो तो संग्रह के साथ वितरण करना प्रारम्भ करो नहीं तो परिग्रह बनकर विग्रह हो जाएगा। ऐसा व्यक्ति न भोग पाता है न किसी को दे पाता है।