दिव्य विचार: सम्पत्ति कभी किसी की नहीं रही- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि आज की चार बातें लीजिए- भाग्यलक्ष्मी, पुण्यलक्ष्मी पापलक्ष्मी और अभिशप्तलक्ष्मी। यहाँ लक्ष्मी का मतलब सम्पदा से है। लोक में लक्ष्मी को सम्पदा कहा जाता है। यहाँ लक्ष्मी से तात्पर्य सम्पदा-सम्पत्ति से लेना। सम्पत्ति कभी किसी की नहीं रही। कहा जाता है कि कीर्ति कुँवारी है और लक्ष्मी यानि सम्पत्ति को वेश्या के समान कहा है। यहाँ किसी देवी की बात नहीं; धन- पैसे को लेना। सम्पदा को वेश्या और कीर्ति को कुँवारी कहा गया क्योंकि जो कीर्ति को चाहते हैं कीर्ति उसे नहीं चाहती, इसलिए उसका ब्याह ही नहीं हो पाया और जो सम्पदा को चाहते हैं सम्पदा उसको नहीं चाहती; सम्पदा रोज अपना पति बदलती है, अपना स्वामी बदलती है इसलिए सम्पदा को वेश्या बताया गया। वह किसी एक की नहीं होती इसलिए वेश्या है और कीर्ति किसी को चाहती नहीं इसलिए वह कुँवारी है। ये जीवन की स्थिति है। चार प्रकार की सम्पदा में सबसे पहली भाग्यलक्ष्मी। भाग्यलक्ष्मी का मतलब ऐसे लोगों की सम्पदा जिन्हें बिना प्रयास के सारी सम्पत्ति मिल गई। एक बच्चे ने किसी करोड़पति के घर में जन्म लिया उसको भाग्यलक्ष्मी विरासत में मिल गई। उसके लिए उसे कोई प्रयास-पुरुषार्थ करने की आवश्यकता नहीं हुई। जिस दिन जन्म लिया उसी दिन वह करोड़ों का स्वामी बन गया। ये है भाग्यलक्ष्मी । एक बालक भिखारी के घर पैदा हुआ। उसी दिन से भिखारी हो गया। ये उसके दुर्भाग्य की सम्पदा है। दुर्भाग्य व्यक्ति को भिखारी बनाता है तो सौभाग्य व्यक्ति को करोड़पति, अरबपति, राजा भी बना देता है। जो लक्ष्मी तुम भाग्य में लेकर आए वह भाग्यलक्ष्मी है। निश्चित रूप से तुम सब लोग भाग्यशाली हो क्योंकि तुम में से कोई भी भिखारी के घर पैदा नहीं हुआ। भाग्य की सराहना करो। बहुत ऊँचा भाग्य है तुम्हारा, कुछ न कुछ लेकर ही आए हो, ये भाग्यलक्ष्मी है।