संघर्ष समिति का दावा, लिफ्ट नहीं टनल से ही आएगा नर्मदा जल

सतना | नर्मदा जल को विंध्य की धरा तक लाने के लिए अब लिफ्ट नहीं टनल का ही उपयोग किया जाएगा। इसी के साथ गत वर्ष वेवकास के साथ लिफ्ट निर्माण के लिए साइन हुए एमओयू को भी अमान्य कर दिए देने की खबर है।  नर्मदा जल सतना लाओ संघर्ष समिति का दावा है कि यदि सरकार अब नियमित टनल खुदाई का कार्य दोनों सिरों से कराए तो तय समय सीमा तक टनल की खुदाई का काम पूरा हो सकता है। संघर्ष समिति के पदाधिकारी इस बात को लेकर उत्साहित हैं कि सरकार जनहित में उनकी बातों पर अमल करने की राह पर आगे बढ़ रही है।

गौरतलब है कि संघर्ष समिति के संयोजक पूर्व विधायक रामप्रताप सिंह ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर लिफ्ट के बजाय टनल निर्माण की तकनीकी पहलुओं के साथ वकालत की थी। बिंदु क्रमांक-12 में पूर्व विधायक ने यह सुझाव भी दिया था कि ठेक ा कंपनी की ठेका अवधि इस शर्त के साथ बढ़ाई जाय कि ठेका कंपनी प्रतिमाह कम से कम 300 मीटर टनल की खुदाई दोनो सिरों पर करेगी। सरकार ने 275 मीटर प्रतिमाह टनल खुदाई का लक्ष्य निर्धारित कर दिया है। यदि इस गति से टनल की खुदाई कराई गई 27 से 28 माह में टनल निर्माण का काम पूरा हो जाएगा।

इंफ्रास्ट्रक्चर रहे तैयार 
निर्बाध काम से ही यह संभव हो सकता है कि नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण द्वारा जल आवंटन के करार के अनुसार मप्र के हिस्से के पानी को बचाया जा सके। सरकार को संजीदगी दिखानी होगी कि टनल के काम को भी पूरा कराने के साथ साथ नहर व अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर भी दुरूस्त करा लिए  जाय ताकि टनल निर्माण के बाद जल प्रवाह की संरचनाएं दुरूस्त रहें और नर्मदा जल उन लक्षित गांवों तक पहुंच सके जिन गांवों को इस परियोजना के तहत जोड़ा गया है। यदि सरकार बरगी नहर परियोजना को  समय सीमा में पूर्ण करा ले तो सतना जिले के नागौद  क्षेत्र के  200, ,सोहावल क्षेत्र के 170, अमरपाटन ब्लाक के 155, मैहर ब्लाक के 140, उचेहरा ब्लाक के 105, रामपुर ब्लाक के 72, मझगवां ब्लाक के 13 गांवों के अलावा रीवा जिले के  30 गांवों की तकरीबन 2.45 लाख हेक्टेयर भूमि सिंचित हो सकती है और विंध्य एक नए एग्रीकल्चर कारीडोर के तौर पर उभर सकता है। 

इसलिए चिंतित है विंध्य का किसान 
नर्मदा के पानी को लेकर जब राज्यों के बीच तकरीबन 4 दशक पूर्व खींचतान शुरू हुई तब 1979 में नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण ने अगले 45 साल के लिए जल आवंटन किया । न्यायाधिकरण ने नर्मदा नदी से कुल 28 मिलियन एकड़ फीट(एमएएफ ) जल का आवंटन विभिन्न प्रदेशों के लिए किया  है। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा मप्र के  लिए 18.25 मिलियन एकड़ फीट का रखा गया है, लेकिन मप्र सरकार चार दशक बीतने के बाद भी आवंटित जल के उपयोग के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार नहीं कर पाई।  

उधर गुजरात को 9 एमएएफ और राजस्थान तथा महाराष्ट्र को क्रमश: 0.50 और 0.25 एमएएफ पानी आवंटित किया गया था।इन प्रदेशों ने समय के साथ अपने यहां टनल नेटवर्क बिछाया और आवंटित पानी का शत-प्रतिशत उपयोग करते हुए अब अपना कोटा बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। जाहिर है कि मप्र सरकार ने पानी की कीमत नहीं समझी और बरगी जैसी परियोजनाएं जो जल उपयोग बढ़ाने में अहम भूमिका निभा सकती हैं, पूरी ही नहीं हो पार्इं। उधर न्यायाधिकरण द्वारा दी गई 45 साल की मियाद 2024 में खत्म हो रही है । ऐसे में विंध्य का किसान चिंतित है कि यदि समय पर परियोजना परवान न चढ़ी तो उनके हक का पानी छिन जाएगा। 

सतत प्रयत्नशील रहे
नर्मदा जल लाओ संघर्ष समिति के  संयोजक राम प्रताप सिंह ने कहा कि यह आवश्यक है कि नर्मदा जल लाने का संकल्प पूरा करने के लिए जनमानस लगातार यह सवाल पूछे कि टनल का काम कितना हुआ है? यह विंध्य के  नौजवानों, किसानों, बुद्धिजीवियों,  अधिवक्ता गणों , समाजसेवियों, व्यापारियों, कर्मचारियों, वर्तमान और पूर्व के समस्त जनप्रतिनिधियों,  सभी नर्मदा सेनानियों की इच्छाशक्ति से ही संभव हो सकेगा कि नर्मदा जल का अभिषेक हम अपने क्षेत्र में करें। हमे यही  विश्वास, सहयोग ,शक्ति व साहस तब तक बनाए रखना होगा जब तक हम लक्ष्य को प्राप्त न कर ले। संघर्ष समिति के सदस्य अधिवक्ता सुरेंद्र शर्मा ने बताया कि इस जनहितैषी अभियान के संदर्भ में मिली महत्वपूर्ण जानकारी से इस महाअभियान में शामिल सभी संघर्षशील , सम्बद्ध नर्मदा सेनानियों के बीच में भारी उत्साह है।

उधर बाणसागर के पानी के लिए पूर्व नेता प्रतिपक्ष को ज्ञापन 
बाणसागर के पानी को जिले के विभिन्न जलसंकट ग्रस्त वाले क्षेत्रों तक लाने के लिए ‘बाणसागर हमारा, बांध हमारा अधिकार’ की मुहिम चला रहे पूर्व जिला योजना समिति सदस्य यातेंद्र सिंह ने चुरहट पहुंचकर क्षेत्रीय जनमानस का एक मांग पत्र सौंपा। मांगपत्र में बाणसागर का पानी सतना जिले के नागौद, रैगांव , रामपुर बाघेलान , अमरपाटन क्षेत्र तक लाने के लिए प्रयास करने की मांग की गई है। इस संबंध में पूवर् नेता प्रतिपक्ष ने यातेंद्र सिंह को आश्वस्त किया कि इसके तकनीकी पहलुओं को विषय विशेषज्ञों से समझकर रास्ता निकाला जाएगा।