दिव्य विचार: विषयों की लालसा को नियंत्रित करें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है? मेरे जीने का मकसद क्या है? क्या चाहते हो? सुख चाहते हो कि नहीं? महाराज ! सुख चाहते हैं इसलिए तो आए हैं। अच्छा ये बताओ अभी सुन रहे हो तो सुख मिल रहा है कि नहीं मिल रहा है? ऐसा तो नहीं लग रहा कि आज तो महाराज लपेट रहे हैं। सुख क्यों मिल रहा है क्योंकि यहाँ जो बातें बताई जा रही हैं वे बातें तुम्हारे मन को अच्छी लगती हैं। तुम्हारे मन को अच्छी लगने वाली एक भी बात नहीं है। ध्यान रखना ! संतो का उपदेश व्यक्ति के मन को खुश करने के लिए नहीं होता; संतो का उपदेश व्यक्ति की आत्मा को प्रसन्न करने के लिए होता है। मैं वह बात नहीं कहना चाहता हूँ जो तुम्हारे मन को अच्छी लगे। मैं सदैव वह बात कहना चाहता हूँ जिससे तुम्हारा जीवन अच्छा बने। मन को अच्छी लगने वाली बातें तो तुम आज तक संसार में सुनते रहे हो; जीवन को अच्छा बनाने वाली बात जिस दिन सुन लोगे, जीवन धन्य हो जाएगा। जीवन को अच्छा बनाओ। जीवन अच्छा तभी बनता है जब मनुष्य अपनी दिशा ठीक करता है, विषयों की लालसा को नियंत्रित करता है, भोगों की आसक्ति को मंद करता है और अपने जीवन में संयम तथा वैराग्य का रास्ता अपनाता है, जीवन अच्छा बनाता है। जीवन को अच्छा बनाना तो चाहते हो पर त्याग-संयम अच्छा नहीं लगता, भोग विलास अच्छा लगता है। तो फिर क्या होगा? फिर विनाश ही तो होगा और अभी तक हुआ भी विनाश ही है। मैं आपसे कह रहा था लोक जीवन में आप जब कभी भी कोई कार्य करते हैं और उसमें अनुकूल परिणाम नहीं आता तो तुरंत डायरेक्शन चैन्ज करते (दिशा बदलते) हो।