दिव्य विचार: वात्स्ल्य का भाव हमेशा रखना चाहिए- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: वात्स्ल्य का भाव हमेशा रखना चाहिए- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि शरीर के दूसरे ऑर्गन्स फेल हो जाएँ तो भी आदमी कुछ पल जिन्दा रह सकता है, माइण्ड डेड हो जाए तो कोमा में पड़ सकता है, वर्षों रह सकता है। शरीर के अन्य अंग फेल हो जाएँ फिर भी कुछ दिनों तक साँस चल सकती है, लेकिन हार्ट फेल हो जाए तो क्या होगा? तुम्हारे सम्यग्दर्शन के बाकी अंगों में शिथिलता हो तो भी तुम्हारे सम्यक्त्व के सुरक्षित रहने की सम्भावना है, लेकिन वात्सल्य नष्ट हुआ कि सम्यग्दर्शन का दम निकला। फिर कहाँ है धर्म? विचारिए। एक-दूसरे को को-ऑपरेशन दीजिए। अपनेपन का भाव आते ही तुम्हारा को-ऑपरेशन का भाव आएगा। देखिए, पाँव में काँटा चुभता है, काँटा चुभते ही हम क्या करते हैं? कौन निकालता है? हाथ, कब निकालता है, हाथोंहाथ, गाइड कौन करता है? माइंड । काँटा लगा है पाँव में, निकाल रहा है हाथ, मैसेज दे रहा है माइण्ड और जितनी देर तक वह काँटा बाहर नहीं निकलता उतनी देर तक पूरा शरीर उस पाँव के साथ रहता है। रहता है या नहीं? क्यों? पाँव कहता है शरीर मेरा, हाथ कहता है शरीर मेरा, माइण्ड कहता है शरीर मेरा और शरीर का रोम- रोम कहता है यह पाँव मेरा है। जहाँ मेरेपन की प्रतीति होती है, वहाँ सहयोग की भावना अपने आप आ जाती है। इस मेरेपन के भाव को बढ़ाइए, घर-परिवार से शुरु करके सम्पूर्ण विश्व तक फैलाइए। यह वात्सल्य है। जिसका आज दिनोंदिन अभाव होता जा रहा है, क्योंकि हम संकीर्ण बन रहे हैं। तो पहली बात को- ऑपरेशन की। जो एक-दूसरे को को-ऑपरेट करते हैं, उनके जीवन का मजा क्या होता है।

सन्तः स्वयं परहिते विहिताभियोगाः

मेरे सम्पर्क में दो भाई हैं। बड़ा भाई अपने पैतृक शहर में रहता था। छोटा भाई पच्चीस साल पहले मुम्बई पहुँच गया। महानगर में कारोबार फैलाया, समय का चक्र ऐसा हुआ कि शुरु में कारोबार फैला, बाद में व्यापार एकदम ठप्प हो गया। उसकी माली हालत बहुत अच्छी नहीं रही। लेकिन एक भाई अलग जगह था, दूसरा भाई अलग जगह था। बड़ा भाई दिनों-दिन पनप गया।