इलाज तक नहीं करा पा रहे रोगी कल्याण समिति के कर्मचारी

सतना | मरीजों के इलाज व अस्पताल की स्वास्थ्य सेवाओं में महती भूमिका निभाने वाले रोगी कल्याण समिति के कर्मचारी इन दिनों हलाकान हैं। इलाज के दौरान अपने सेवा भाव से मरीजों को चंगा करने वाले इन कर्मचारियों के हालात इतने बदतर  हैं कि वे अपने परिजनों का इलाज तक नहीं करा पा रहे हैं। रोगी कल्याण समिति के एक ऐसे ही कर्मचारी को अपनी बेटी के सड़क हादसे में गंभीर रूप से घायल होने के बाद इलाज के लिए भटकना पड़ रहा है। मामला रामनगर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र रामनगर में पदस्थ कर्मचारियों का है जिन्हें अस्पताल में पदस्थ वरिष्ठ चिकित्सक डा. विनय कुमार रवि की हठधर्मिता के चलते बीते कई महीनों से तनख्वाह नहीं दी गई है। 

अब कैसे कराए आपरेशन 
रामनगर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में पदस्थ कर्मचारी प्रद्युम्न साकेत की 6 वर्षीया बेटी नीतू साकेत तब सड़क हादसे का शिकार हो गई जब वह घर के बाहर खेल रही थी। सड़क हादसे में वह गंभीर रूप से घायल हो गई जिसे प्राथमिक उपचार के बाद सतना ले आया गया। प्रद्युम्न साकेत ने बेटी को इलाज के लिए पाठक अस्पताल में भर्ती कराया जहां चिकित्सकों ने बेटी नीतू के पांव के आपरेशन की सलाह दी है। जाहिर है कि आपरेशन में लंबी राशि खर्च होगी ।

ऐसे में अप्रैल 2020 में अंतिम वेतन पाने वाले प्रद्युम्न साकेत के सामने यह यक्ष प्रश्न है कि वह अपनी बेटी का इलाज कैसे कराए? रोगी कल्याण समिति का वह इकलौता कर्मचारी नहीं है जिसे वेतन नहीं दी गई है, बल्कि हर कर्मचारी को इसमें उलझा कर रखा गया । इन कर्मचारियों में वार्ड सहायक देवेंद्र कुमार रवि ,रामलाल कहार,पर्ची वितरक सलीम खान, प्रदुम साकेत व स्टोर सहायक धर्मेंद्र कुमार वर्मा, महिला सुरक्षा गार्ड द्रोपदी मिश्रा व पुरूष सुरक्षा गार्ड राजकुमार शर्मा ऐसे कर्मचारी हैं जिन्हें महीनों से वेतन नहीं मिली है।

अब कैसे कराए आपरेशन ​

ऐसा भी नहीं है कि अस्पताल में कमाई बंद है। कायाकल्प अवार्ड  मे लाखों की राशि मिली पर कहां ठिकाने लगाई गई इसका  पता नहीं है। रामनरेश पटेल द्वारा लगाई गई आरटीआई में भी जानकारी नहीं दी गई है। माना जा रहा है कि अवार्ड राशि में भारी घपला किया गया है जिसके चलते न तो कर्मचारियों को प्रात्साहन राशि दी गई और न ही यह जानकारी दी गई कि कौन सी राशि कहां खर्च की गई है। बताया जाता है कि ओपीडी की 10 रूपए व आईपीडी की पर्ची 30 रूपए में काटी जाती है। यदि रामनगर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के रजिस्टरों पर गौर फरमाया जाय तो स्पष्ट है कि कोविडकाल के बाद भी औसतन 18 से 20 हजार रूपए ओपीडी की परची के जरिए आ रहे हैं।

अस्पताल के रिकार्ड बताते हैं कि  जब 10 हजार की ओपीडी परची कटती है तो सामान्यत: औसतन 30 हजार रूपए तक आईपीडी से अस्पताल के खजाने में जमा होते हैं। ऐसे में नवंबर से लेकर अब तक न्यूनतम तकरीबन डेढ़ लाख रूपए पर्चियों से ही कमाए गए हैं, जबकि आरकेएस के 9 कर्मचारियों की कुल वेतन ही 24 850 रूपए बनती है। यदि अस्पताल प्रबंधन कर्मचारियों के प्रति थोड़ा भी संवेदनशील होता तो कुछ महीनों की वेतन देकर आर्थिक संकट का सामना कर रहे आरकेएस के कर्मचारियों को राहत दी जा सकती थी लेकिन वरिष्ठ चिकित्सा प्रभारी डा. विनय कुमार रवि इस पूरी व्यवस्था को निजी व्यवस्था की तरह चला रहे हैं, जबकि बीएमओ भी उन्हें आरकेएस कर्मचारियों को वेतन देने पत्र लिख चुके हैं। 

हमने इसके पूर्व वरिष्ठ चिकित्सा प्रभारी को वेतन देने के लिए चर्चा की थी। निश्चित तौर पर कर्मचारी परेशान हैं। जल्द ही पत्र लिखकर यह सुनिश्चित किया जाएगा कि कर्मचारियों को वेतन मिले। 
डा. आलोक अवधिया, बीएमओ रामनगर