दिव्य विचार: अपने मन की दुर्बलता को दूर करो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: अपने मन की दुर्बलता को दूर करो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि भारतीय संस्कृति में गृहस्थ जीवन को सार्थक बनाने के लिये तीन पुरुषार्थों का वर्णन किया गया है वैसे चार पुरुषार्थ है धर्म, अर्थ, काम, मौक्ष। इन चारों पुरुषार्थो के मध्य एक सदृहस्थ के लिये मोक्ष को लक्ष्य बनाकर धर्म, अर्थ और काम इन तीन पुरुषार्थो के मध्य समन्वय बना कर के जीवन जीने की प्रेरणा दी गई। अपने जीवन के निर्वाह के लिये अर्थ का उपार्जन करो और अपने मन की दुर्बलता को दूर करने के लिये और अपनी संतति के विकास के लिये काम का आश्रय लो। पर एक सीख दी गई कि अर्थ का आश्रय लो अनर्थ से बचते हुए काम का आलंबन लो पर संयम की सीमा में। अर्थ और काम दोनों पर जब तक धर्म का नियंत्रण होता है तब तक हमारा जीवन सफल और सुखी होता है। अर्थ पर धर्म का नियंत्रण होने से अर्थ परमार्थ की सिद्धि में सहायक हो जाता है। काम पर यदि धर्म का नियंत्रण है तो हम कृत काम बनने में समर्थ हो सकते है और धर्म के नियंत्रण के अभाव में काम मनुष्य को लंपट बना देता है उसके जीवन को तमाम कर देता है। तो दोनों के ऊपर नियंत्रण रखने के लिये सबसे पहले धर्म का अनुपालन हुए अपने जीवन को आगे बढ़ाओं गृहस्थ धर्म की से होती हैं। काम पर संयम रखने के लिये विवाह जैसी परंपरा हमारे यहाँ विकसित हुई। ये भारतीय संस्कृति की एक बड़ी प्राचीन परंपरा है और इसी के आधार पर भारतीय समाज पला बढ़ा और ये कहा गया कि तुम अपने जीवन में धर्म धारण करना चाहते हो तो विवाह करो और विवाह के लिये एक शब्द दिया धर्म विवाह बहुत गहराई से समझने की जरूरत है कि विवाह के प्रति हमारे चिंतको की क्या दृष्टि रही हमारी संस्कृति में क्या भावना रही और हमारे यहाँ की क्या परंपरा रही विवाह करने की एक व्यवस्था हमारे यहाँ की गई वह इसलिये कि अगर तुम्हारे अंदर कोई कमजोरी है तो वह कमजोरी एक पर केन्द्रित हो जाए सभी ओर न बहे। विवाह का मूल उद्देश्य अपने काम पर संयम रखकर अपने जीवन को कृत काम बनाने के रास्ते पर चलना है।