दिव्य विचार: पश्चिमी संस्कार हावी हो रहे- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: पश्चिमी संस्कार हावी हो रहे- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि सोच केलक्युलेटिव होती जा रही हैं, व्यक्ति उन सब बातों को लाभ-हानि से जोड़कर देखने लगा है, उसके दुष्परिणाम सामने आने लगे। सेवाभाव होना चाहिये, संयमी और सदाचारी होना चाहिये। कोई बुराई नहीं होनी चाहिये और आखिरी बात संस्कारिता होनी चाहिये उसके अंदर कुलीन संस्कार होना चाहिये, उसके अचार-विचार व्यवहार सब आदर्श होना चाहिये, उसके जीवन में ऐसी कोई ऐब, ऐसी कोई खोट नहीं होना चाहिये जिसके कारण किसी को शर्मिंदगी झेलनी पड़े, कुरल काव्य में लिखा कि माता-पिता को संतान को जन्म देने के बाद इतनी खुशी नही होती, जितनी कि जनम के बाद लोगों के मुख से यह सुनने पर कि किस तपस्या के फलस्वरूप तुमने ऐसी संतान को पायी हैं। बंधुओं अच्छे संस्कार बहुत जरूरी है और प्रारंभ से बच्चों में अच्छे संस्कार डालने चाहिये और संस्कार बच्चों में फलीभूत होते दिखाई पड़ने चाहिये। आज के दौर में सबसे ज्यादा ह्रास हुआ है तो संस्कारों का हुआ है। शिक्षा बढ़ी है। संस्कार खोए है। और ये उल्टे-पुल्टे संस्कारों का परिणाम भी सब उल्टा हो रहा है। अब तो बच्चे इस तरह से होते है कि घर में काम करे तो पैसे माँगते हैं, ये संस्कार है। ये सब पश्चिमी संस्कार हम पर हावी हो रहे है। उसके कुपरिणाम रोज देखने में आ रहे हैं। अपने जीवन में इसमें बदलाव एक संस्कारित पुत्र और एक संस्कार हीन पुत्र की क्या दशा होती है, दो घटनाओं के माध्यम से सुनाकर के आगे बात करूंगा, सबसे पहले संस्कारित पुत्र की बात मैं आपसे करता हूँ, संस्कारित पुत्र साधारण परिस्थिति में जीने वाला, लेकिन माता-पिता के प्रति बड़ी श्रद्धा, निष्ठा रखने वाला संयम-साधना के साथ जीने वाला, धर्म ध्यान करने वाला और माँ-बाप की सेवा को भी धर्म ध्यान का अंग मानने वाला पुत्र क्या होता है।