दिव्य विचार: संतान को सेवाभावी और साहसी बनाओ- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: संतान को सेवाभावी और साहसी बनाओ- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि अच्छा पुत्र कौन होगा जो विनीत हो, पहला गुण है पुत्र का। एक अच्छे पुत्र के चार गुण-साहसी हो, सेवाभावी हो, संयमी हो और संस्कारी हो। साहस उसके अंदर होना चाहिये, पराक्रमी होना चाहिये, आप अपनी संतान को एक अच्छी संतान बनाना चाहते है तो डराके मत रखो, उसके अंदर साहस भरें, पौरुष और पराक्रम का जोश जगाएँ, अगर वो साहसी होगा आगे बढ़ेगा। सेवाभावी हो, अपने माता पिता की अपने परिजनों की और अपने घर परिवार से बाहर के लोगों की यथासंभव जहाँ तक हो उनकी सेवा करे। उनकी सेवा को कभी भूलाए नहीं। मेरे संपर्क में ऐसे कई लोग है जो आज पचास-पचास वर्ष के हो गये लेकिन आज भी अपने पिता के पाँव दबाएँ बिना नहीं सोते। बचपन से अब तक। ये सेवा भाव माँ-बाप के प्रति आजकल के बच्चे सेवाभाव नहीं जानते। उनका माता-पिता के प्रति जितना जुड़ाव होना चाहिये उतना जुड़ाव नहीं दिखता। माँ-बाप की सेवा होनी चाहिये और बच्चों का माँ-बाप के साथ अंतरंग संबंध बनना चाहिये । प्रायः ऐसा होता है कि बच्चों को माँ-बाप से संवाद ही नहीं होता, डायलाग नहीं हो पाता, एक दूसरे के साथ जुड़ नहीं पाते। हम उस देश में रहने वाले है जिस देश में माँ-बाप की सेवा के लिए संतान ने बड़े-बड़े उत्सर्ग किये। श्रवण कुमार ने माँ-बाप को कांवड़ में बिठाकर चारों धाम की यात्रा की। कांवड़ में जल लेकर चलने वाले कांवड़िये तो बहुत मिल जायेंगे लेकिन कांवड़ में माँ-बाप को बिठाकर चारों धाम की यात्रा कराने वाला श्रवण कुमार तो बिरला ही है। ये उसकी सेवा भाव की अभिव्यक्ति है। माँ-बाप की कितनी सेवा हो उसकी कोई लिमिट नहीं है, जब जैसी । आवश्यकता हो तो वैसी सेवा करो, क्यों करो? क्योंकि जब तुम छोटे थे। तुम्हारे माँ-बाप ने तुम्हारी पूरी सेवा की तुम्हारी पूरी परवरिश की, तुम्हें समय पर खिलाया पिलाया, नहलाया-धुलाया, बीमार पड़ने पर डाक्टर को दिखाया, तुम्हारी गंदगी साफ की और तुम्हारी लात भी खाई। जिस समय दूध पीते हैं लात मारते है उस समय माँ की ममता और उछलती है।