सवालों के घेरे में सुपर स्पेशलिटी में नर्सों की भर्ती प्रक्रिया
रीवा | सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में चयनित नर्सों की भर्ती प्रक्रिया सवालों के घेरे में आ गई है। पूर्व में निकाले गए विज्ञापन के अनुसार जिन अभ्यर्थियों द्वारा स्टाफ नर्स के लिए आवेदन किया था, उनकी परीक्षा के बाद रिजल्ट भी घोषित कर दिए गए। इतना ही नहीं उनसे एनओसी भी मांगी गई। जब चयनित स्टाफ नर्स द्वारा नौकरी छोड़ने की एनओसी दे दिए, इसके बाद उनकी नियुक्ति पत्र देने में प्रबंधन आनाकानी करने लगा।
ताज्जुब की बात तो यह है कि एक सैकड़ा से ज्यादा चयनित अभ्यर्थियों को दरकिनार कर एक बार फिर से नए सिरे से भर्ती के लिए विज्ञापन जारी कर दिया गया। बुधवार को सुपर स्पेशलिटी के लिए परीक्षा उत्तीर्ण कर चयनित सूची में आ चुके एक सैकड़ा नर्सों ने संभागायुक्त से मिलकर नए सिरे से भर्ती प्रक्रिया शुरू करने पर प्रबंधन को जिम्मेदार ठहराया है। नए सिरे से शुरू की गई भर्ती प्रक्रिया के बाद निकाले गए विज्ञापन से सुपर स्पेशलिटी अस्पताल प्रबंधन को कठघरे में खड़ा कर दिया है। सबसे बड़ा सवाल यह पैदा हो रहा है कि पूर्व में की गई भर्ती प्रक्रिया जब गलत थी, तब स्टाफ नर्स के लिए क्यों आवेदन लिए गए एवं उनकी परीक्षा ली गई।
एनओसी देकर फंस गई स्टाफ नर्स
सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के लिए पूर्व में जो भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई थी, उसमें हुई परीक्षा के बाद जो चयनित उम्मीदवार थे उनसे एनओसी एवं एक्सपीरियेंस सर्टीफिकेट मांगा गया था। गौर करने वाली बात यह है कि जिस अस्पताल में पहले से वह कार्य कर रहे थे, वहां से जब उन्होंने एनओसी ली उस समय उन्हें नौकरी भी छोड़नी पड़ी। अब अस्पताल प्रबंधन उन चयनित उम्मीदवारों को होल्ड कर रहा है। उनका कहना है कि सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के लिए पहले ऐसे उम्मीदवारों को लिया जाएगा जो सरकारी कॉलेज से बीएससी नर्सिंग किए हैं। बार-बार बदली जा रही भर्ती प्रक्रिया से 138 उम्मीदवारों के उम्मीद पर पानी फिरता नजर आ रहा है।
पहले दी थी इंदौर कॉलेज को प्राथमिकता
सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के लिए जब आवेदन मांगे गए थे उस समय शासकीय नर्सिंग कॉलेज इंदौर से पास आउट छात्रों को प्राथमिकता दी गई थी। ऐसे में कई प्राइवेट कॉलेजों के पास आउट छात्रों ने भी आवेदन किया था। रिजल्ट बन जाने के बाद चयन सूची में आ चुके शासकीय एवं अशासकीय कॉलेजों के पास आउट छात्र के बाद दोबारा शुरू हुई भर्ती प्रक्रिया में एमपी के सभी शासकीय कॉलेजों के छात्रों को पहले प्राथमिकता देने की बात कही जा रही है।