दिव्य विचार: बातों से नहीं, आचरण से होगा कल्याण- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि जिसके अंतरंग में सत्य के प्रति निष्ठा होती है उसके भीतर ऐसा ही पराक्रम प्रकट होता है। बंधुओं सत्य का ज्ञान, सत्य की और सत्य का आचरण तीन स्तर पर करना है- भावना के स्तर पर वाणी के स्तर पर और व्यवहार के स्तर पर जो कुछ भी हमारा आचरण है सब सत्य का आचरण है। जब सत्य का आचरण करोगे तभी सत्य की अनुभूति होगी। कुछ लोग असत्य का आचरण करके सत्य की अनुभूति करना चाहते हैं। असत्य का आचरण करके सत्य की अनुभूति आज तक किसी को हुई है क्या? व भूतो न भविष्यति। सत्य की अनुभूति केवल वही और वही कर सकते हैं जो सत्य का आचरण करते हों। इसलिए सत्य का आचरण करना शुरू कीजिए, धर्मनिष्ठ बनना शुरू कीजिए। लोग बड़ी-बड़ी बातें कर देते हैं लेकिन आचरण के क्षेत्र में प्रायः पिछड़ जाते हैं। आप कितनी ही बड़ी-बड़ी बातें कर लें, वह व्यर्थ है, आचरण के क्षेत्र में सम्हलने की कोशिश कीजिए। जब तक आचरण नहीं तब तक कल्याण नहीं। आत्मा के गीत गाने मात्र से आत्मा की अनुभूति नहीं होगी। आत्मा की अनुभूति तो उन्हें ही होती है जो अध्यात्म के सरोवर में डुबकी लगाते हैं। बधुओं ! सत्य का अनुभव तभी होगा जब सत्य का आचरण होगा। एक व्यक्ति तैरना सीखना चाहता था। वह तैराक के साथ नदी पर गया। तैराक ने पानी में पाँव रखा और उस व्यक्ति से कहा- आओ भाई ! तुम भी पानी में आओ और सीखो। वह सकपकाने लगा. पानी में पाँव कैसे रखूँ? हिम्मत न हो सकी। तैराक द्वारा प्रेरित करने पर उसने हिम्मत की और पानी की ओर जाने लगा। पहला कदम रखते ही वह फिसल गया और किनारे पर ही गिर गया। उठा और पाँच पटकते हुए बोला- भगवान कसम जब तक मैं तैरना न सीख लूँ तब तक क्या मजाल कि मैं भूलकर भी पानी में पाँव रखूँ।