दिव्य विचार: अपने जीवन की दिशा तय करें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि पर्वत के शिखर से नदी बहती है। अपने दोनों तटों के मध्य नियंत्रित वेग और निर्धारित दिशा की ओर जब वह प्रवाहित होती है। तब विशाल सागर का रूप धारण कर लेती है। नदी जब अपने कूल-किनारों के मध्य नियंत्रित वेग और निर्धारित दिशा की ओर प्रवाहित होती है तो सागर में समाहित होती है और जब अपने कूल - किनारों का उल्लंघन कर देती है, उन्हें छोड़ देती है तो मरुस्थल में भटककर खो जाती है। नदी; सागर में सिमटकर भी मिटती है और मरुस्थल में भटककर भी मिटती है। नदी का सागर में सिमट जाना अपने क्षुद्र अस्तित्व को विराट रूप प्रदान करना है और मरुस्थल में भटक जाना अपने अस्तित्व को विनष्ट कर डालना है। नदी सागर में तभी जा पाएगी जब उसकी दिशा सही और नियंत्रित हो। बस इसी दिशा और नियंत्रण के निर्धारण का नाम संयम है। सन्त कहते हैं अपने जीवन की धारा को तुम शांति के सागर तक पहुँचाना चाहते हो तो उसे सही दिशा और नियंत्रित वेग में प्रवाहित करो। यदि तुम्हारे जीवन में सही दिशा और नियंत्रण होगा तो तुम शांति के सागर तक पहुँच पाओगे अन्यथा विषयों के मरुस्थल में भटककर नष्ट-भ्रष्ट हो जाओगे। ऊर्जा तुम्हारे पास है; उसका उपयोग कैसे करना है इस विषय में आज के लिए चार बाते हैं- दिशा, दशा, दृष्टि और सृष्टि। सबसे महत्त्वपूर्ण बात है दिशा की दिशा मतलब डायरेक्शन। संयम कहता है अपनी विषयगामी इन्द्रियों और मन को सही दिशा देना। अभी तुम्हारी चेतना किस दिशा में जा रही है? जिनकी चेतना इन्द्रियों और विषयों की तरफ भागती है, समझ लेना उनके जीवन की दिशा गलत है। ये गलत डायरेक्शन हैं। गलत डायरेक्शन में चलने वाले व्यक्ति की जिंदगी की दशा बहुत खराब होती हैं।