दिव्य विचार: अपने आपको नकारात्मकता से बचाइये- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: अपने आपको नकारात्मकता से बचाइये- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि व्यवहार में तुम जिसकी सुरक्षा को लेकर चिन्तित रहते हो, उसकी सुरक्षा हो नहीं सकती और भीतर की जिस सुरक्षा की चिन्ता है, वह कहीं असुरक्षित है ही नहीं। आत्मा की कौन सी असुरक्षा है, बोलो... है कोई असुरक्षा? अरे ! वह तो सबकी पहुँच से परे, वह तो सबके स्पर्श से परे है-

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।

न चैनं क्लेदयन्त्यापो न च शोषति मारुतः ॥

जिसे शस्त्र छेद न सके, जिसे हवा उड़ा न सके, जिसे अग्नि जला न सके और जिसको पानी गला न सके वह मैं हूँ।

उसे तो पहचानो। जिस पल तुम्हें तुम्हारे आत्मतत्त्व की पहचान हो जाएगी, आत्मा का सच्चा श्रद्धान जग जाएगा, तुम्हारे मन में किसी भी प्रकार की शंका या भय का कोई स्थान नहीं रहेगा। अपने आपको नकारात्मकता से बचाइए, चारों प्रकार की शंका निर्मूल हो जाएगी। बस इन चार बातों को आत्मसात कीजिए फिर रोज शंका-समाधान में भी आने की जरूरत नहीं पड़ेगी। यही चार फॉर्मूला है, जिसने इसे अपना लिया, वह निःशंक हो गया। जैन दर्शन में कहा जाता है- सच्चा धर्मी वही है जो निःशंक है, जिसके मन में शंका है, वह धर्मी नहीं। सन्त कहते हैं- 'शंका को खत्म करो, जीवन में डंका पिट जाएगा, फिर तुम्हें कुछ करना नहीं, लंका जीत जाओगे।' इस शंका को हटाइए, अपने भीतर वह भाव-बोध जगाइए, जीवन की दिशा-दशा सब अपने आप परिवर्तित हो जाएँगी। यह शंका की बात हुई। अब इसी से जुड़ी हुई बात है जो शंका के ही परिवार का एक सदस्य है, वह है- शक । शक किस पर होता है? शंका तो स्वयं के प्रति होती है और शक सदैव दूसरों के प्रति होता है। शक भी एक शंका है। शंका का समाधान तो बहुत आसानी से मिलता है लेकिन शक का समाधान बड़ा कठिन हो जाता है। जब तुम्हारे मन में किसी के प्रति एक बार कोई शक बैठ गया तो उस कीड़े को निकाल पाना बड़ा मुश्किल होता है।