दिव्य विचार: कमाई का एक अंश दान करो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि परिग्रह की निवृत्ति का नाम त्याग है। अर्थात् मुनियों का जो त्याग है वह सर्वस्व का त्याग है। अपने सर्वस्व का त्याग ही परिग्रह की निवृत्ति है। गृहस्थों के लिए जब बात कही गई तो कहा गया- 'त्यागो दानम' त्याग का मतलब दान। दान अंश का होता है त्याग सर्वस्व का होता है। गृहस्थ सर्वस्व को नहीं त्याग सकता। उसके पास जो है उसका एक अंश ही त्यागेगा। त्यागी का स्थान बहुत उच्च होता है। साधु सर्वस्व को त्यागता है, अपने पास कुछ भी नहीं रखता। तिल-तुष मात्र भी नहीं रखता। साधु त्याग की प्रतिमूर्ति होते हैं। गृहस्थ दानी अंश दान देता है। दान देने के लिए गृहस्थों को कहा गया है क्योंकि वह जो कुछ भी धन सम्पत्ति कमाता है उसमें पाप का उपार्जन होता है। बिना पाप के पैसा कमाना संभव नहीं है। अनीति के बिना पैसा कमाया जा सकता है पर बिना पाप के नहीं। क्योंकि धनार्जन में प्रत्येक व्यक्ति के द्वारा षट्काय जीवों की विराधना होती है। अपने द्वारा अर्जित धन का कुछ अंश में भोग भी कर लेंगे और शेष एक दिन छोड़कर चले जाएँगे लेकिन उसके साथ जो उपार्जित पाप है वह कहाँ जाएगा। उस पाप को साफ करने के लिए गृहस्थों के लिए दान की प्रेरणा दी गई। सारा मत करो, अंश में दान करो, कुछ भाग दान करो जिससे वह पाप बैलेन्स (बराबर) हो जाए। बंधुओं ! जब त्याग और दान की बात आती है तो दान की अपेक्षा त्याग का स्थान ऊँचा है क्योंकि दान अंश का और त्याग सर्वस्व का होता है इसलिए हमारे देश में त्यागी की पूजा होती है और दानी की प्रशंसा। जो सब त्याग दे वह पूज्य हो जाता है और जो अंश में त्यागे वह प्रशंसा का पात्र बनता है। आज तुम्हारे द्वारा दिया गया अंश-दान कल तुम्हारे कल्याण का कारण बनेगा। आज का ये दान कल तुम्हें त्यागी बनने का पुण्य प्रदान करेगा। जिससे त्याग के बल पर अपने सर्वस्व को प्राप्त कर सको।