दिव्य विचार: कर्म जैसे करोगे वैसा फल मिलेगा- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: कर्म जैसे करोगे वैसा फल मिलेगा- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि कर्म का उदय है स्वीकार करेंगे। प्रतिकूल संयोग मिलने पर समता, अनुकूल संयोग मिटने पर समता। अनिष्ट के संयोग में समता, इष्ट के वियोग में समता। चक्र है, चल रहा है, चलने दो मैं तो उसका एक पार्ट (हिस्सा/भाग) हूँ। यह मेरे हाथ में नहीं। यह कर्म का संसार है, इसमें मेरा कोई रोल (भूमिका) नहीं, वह जैसा चाहे रहे, जैसा चाहे रखे। ऐसी दृष्टि अपने भीतर विकसित कर लो। तुम्हारे हाथ में कुछ है ही नहीं। तुम जिस चीज को जैसा मैन्टेन करना (बनाए रखना) चाहो, वैसा हो ही नहीं सकता। कर्म जैसे करोगे फल भी वैसे ही मिलेंगे और कर्म जैसा चाहेगा तुम्हें वैसा नचाएगा। जिस दिन इस बात पर विश्वास हो जाएगा जीवन धन्य हो जाएगा। मन में तनाव और चिन्ता, इससे अपने आपको मुक्त कर लेना एक तपस्या है। तनाव क्यों आता है? आजकल तो तनाव, टेंशन एक बहुत बड़ी समस्या है। महामारी बन गई है। बच्चे से लेकर बूढ़े तक। आठ साल का बच्चा हो या साठ साल का वृद्ध; सबको टेंशन है। बच्चों को शुरु से अपने पेपर के मार्क्स (अंको) की टेंशन हो जाती है, बड़ो को अपनी नौकरी-पेशे, व्यापार का टेंशन, बच्चों के विवाह का टेंशन और बूढ़ों को अपने बुढ़ापे का टेंशन। आदमी टेंशन में जन्मता है, टेंशन में ही मरता है और जितने दिन जीता है उतने दिन टेंशन में ही रहता है। ये तनाव क्यों आता है? कभी आपने विचार किया? परिस्थिति और मनःस्थिति के बीच जब असन्तुलन होता है तभी तनाव आता है। परिस्थितियाँ कुछ होती हैं, मनःस्थिति कुछ होती है, हम चाहते कुछ हैं और होता कुछ है, तो तनाव हो जाता है। मन के विरुद्ध हुआ, मन कुछ सोच रहा है, मन कुछ चाह रहा है और हो कुछ रहा है तो तनाव हो रहा है। सन्त कहते हैं अपने मन को प्रसन्न रखो क्योकि मन के अनुकूल होगा ही नहीं। मनोनुकूल सब कुछ घटे ये शक्ति तुम्हारे पास नहीं है पर जो कुछ भी घटे उसे मनोनुकूल बना लेने की शक्ति तुम्हारे पास है। जो घट जाए, मन को उसके अनुकूल बना लो, उसे स्वीकार कर लो कर्म के उदय के रूप में।