दिव्य विचार: वाणी का संयम जरूर रखें - मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: वाणी का संयम जरूर रखें - मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि

वाणी ऐसी बोलिए मन का आपा खोय।

औरन को शीतल करे आपहूँ शीतल होय ॥

वाचिक संयम, वाणीगत संयम।

शब्द को बोलने से पहले तोलना। अप्रिय कटुक कठोर शब्द नहीं कोई मुख से कहा करे आप जो बोलते हैं उसे आत्मसात करें। ऐसे शब्द अपने मुख से कभी उच्चारित मत करें। ये वाणी का संयम है। एक राजा था। उसकी एक आँख थी। उसे अपना चित्र बनवाने की सनक चढ़ी। चित्र बनवाएँ कैसे? अपना चित्र बनवाने के क्रम में उसने तीन चित्रकारों को बुलवाया और कहा मेरा खूबसूरत चित्र बनना चाहिए। तीन चित्रकारों में पहले चित्रकार ने राजा जैसा था वैसा चित्र बना दिया। राजा ने चित्र देखा तो काणा चेहरा देखकर कुपित हो गया। बोला- ये कोई चित्र बनाया। चित्रकार को जेल में डाल दिया। दूसरे चित्रकार के चित्र को देखा तो उसने सोचा राजा काना है तो ये ठीक नहीं होगा।, उसने उसकी दोनों आँखें बना दीं। राजा ने कहा थे चाटुकार है इसको भी हटाओ। पहला था स्पष्टवादी वह जेल चला गया। दूसरा चाटुकार निकला इसलिए वह भी काम का नहीं। तीसरे चित्रकार से बोला अपना चित्र दिखाओ। चित्रकार ने अपना चित्र दिखाया। उसने बहुत होशयारी से काम किया। उसने शिकारी मुद्रा । में राजा का चित्र बनाया। एक तीर काणी आँख के पास लगा कर तान दिया। एक हाथ तौर पर और एक हाथ कमान पर इसप्रकार निशाना साधते हुए चित्र बनाया। राजा चित्र देखकर प्रमुदित हो गया। अपने गले का हार उसके गले में डाल दिया। बोला- हो व्यवहार कुशल। अवसर के अनुरूप बात करने वाले। तुम बंधुओं ! पहला चित्र सत्य था पर प्रिय नहीं। दूसरा चित्र प्रिय था पर सत्य नहीं। पर तीसरा चित्र सत्य भी था और प्रिय भी था। बस जीवन व्यवहार में ऐसी सत्यता और प्रियता को प्रतिष्ठित करना चाहिए। वाणी का सत्य यानि कमिटमेंट का धनी । प्रामाणिकता जिसके वचनों की कीमत हो वह वाणी के सत्य का धारक होता है।