दिव्य विचार: ये जन्म भी व्यर्थ न चला जाए- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: ये जन्म भी व्यर्थ न चला जाए- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि आज से तय करो कि अभी तक मैं इन्द्रिय विषयों की तरफ अपनी दृष्टि रखता था अब मैं त्याग की और दृष्टि रखूँगा। अभी तक मेरी दृष्टि भोगवादी थी अब मैं अपने भीतर आध्यात्मिक दृष्टि जगाऊँगा। जो मनुष्य अपने जीवन की दिशा बदलते हैं उनकी दशा बदल जाती है और दशा बदलने से दृष्टि बदलती है। अपनी अंतर्दृष्टि को बदले बिना मनुष्य जीवन में कुछ भी नहीं पा सकता। किसी व्यक्ति से मैं कितने भी नियम-संयम लेने की बात करूँ लेकिन उस पर तब तक असर नहीं पड़ता जब तक उसकी दृष्टि नहीं बदलती। कोई व्यक्ति गुटखा मसाला खाता है; उसे लाख समझाओ कि गुटखा मसाला नहीं खाओ लेकिन वह छोड़ने को राजी नहीं होता- क्योंकि अभी उसमें उसकी उपादेय बुद्धि है, उसकी दृष्टि में अभी वह हेय नहीं बना इसलिए वह उसे मजा देता है। उसे पता नहीं इस मजा में जिंदगी की कितनी बड़ी सजा है। अभी उसका मन इस बात को स्वीकारने के लिए राजी नहीं है। जब तक किसी वस्तु में, किसी विषय-सामग्री में उपादेय बुद्धि है, तुम्हारी दृष्टि में वह अच्छी है तब तक कोई उसे कितना भी समझाए वह उसे छोड़ नहीं सकता। जिस दिन तुम्हारी दृष्टि में ये बात आ जाएगी कि ये चीज ठीक नहीं, ये मेरे लिए हानिकारक है, उपादेय नहीं है, ये तो छोड़ने योग्य है, इसे मुझे छोड़ना है तब एक पल छूट जाएगी। फिर आपको उपदेश देने की जरूरत नहीं पड़ेगी। बन्धुओं ! दृष्टि बदलिए, अंतर्दृष्टि जगाइए, आध्यात्मिक दृष्टि जगाइए। ऐसे अन्धे बनकर अनन्त जन्म गँवा दिए। ये जन्म भी व्यर्थ न चला जाए। सम्हलो, अपने भीतर की अंतर्दृष्टि जगाओ, स्वयं का अन्तर्विश्लेषण करके देखो कि अभी तक जिस रास्ते मैं चला, जिस दिशा में मैं चला उसका नतीजा क्या निकला। अगर तुम अपनी दिशा की समीक्षा करोगे तो तुम्हारी दृष्टि बदलेगी और दृष्टि बदलेगी तो तुम्हारी सृष्टि बदल जाएगी।