दिव्य विचार: ज्यादा गुस्सा आए तो थोड़ा विनोदी बनो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि मैं आपसे कहता हूँ जितने भी लोग मन खराब करते हैं न सब बेकार में ही करते हैं। यथार्थ में मन खराब करने लायक कुछ होता ही नहीं। बेमतलब मन खराब करने की आदत छोड़ो। समग्रता से विचार करो मन कभी खराब नहीं होगा और तभी जीवन धन्य होगा। जब ज्यादा गुस्सा आने लगे, झगड़े की ज्यादा नौबत आने लगे तो थोड़ा विनोदी बनो। विनोदप्रियता... गहरी बात को भी मजाक में लेना शुरु कर दो झगड़ा शांत हो जाएगा। पत्नी पति से नाराज हो गई और धमकाते हुए बोली- ज्यादा करोगे तो मैं मायके चली जाऊँगी। पति पत्नी के स्वभाव को जानता था कि ये जो बोल देती है सो करती है, उसने तुरंत पैंतरा बदला और बात को सम्हाला। बोला ठीक है तुम मायके हो आओ, पप्पू भी इस बहाने ननिहाल हो आएगा और मैं भी इसी बहाने कुछ दिन ससुराल मे रह लूँगा। मामला सुलट गया। हल्के में लिया, विनोद में लिया तो मामला सुलट गया। विनोदप्रिय बनें। अपने अंदर की सहनशीलता को बढ़ाने की कोशिश करें और इतना नहीं हो सके तो मौन धारण कर लें झगड़ा खत्म हो जाएगा। क्रोध आ जाए तो कलह मत करो, कलह हो जाए तो क्रूर मत बनो। क्रोध पर अपने आप को रोको, क्रोध पर नहीं रोक सकते तो कलह पर अपने आप को रोको, कलह पर नहीं रोक सकते तो कम से कम क्रूरता पर तो जरूर रोको। क्रूर मत बनो मतलब किसी से झगड़ा हो तो ऐसा झगड़ा मत करो कि मरने-मारने की बात आ जाए। हिंसक प्रतिशोध और प्रतिरोध की भावना मन में आना घोर अनर्थ है। मन में ऐसी क्रूरता नहीं आए कि अब तो मैं उसे सबक सिखाकर ही छोडूंगा। ये परिणति क्रूरता की परिणति होती है। ऐसा व्यक्ति हिंसक होता है, ऐसा व्यक्ति हत्यारा बनता है, ऐसा व्यक्ति प्रमत्त बनकर कुछ भी कर लेता है। क्रूरता कतई अनुकरणीय नहीं है। इसलिए कभी भी क्रूरता मन में मत आने दो और अगर क्रूरता के साथ ही कटुता आई है तो कटुता मतलब बैर की गांठ तुमने बांध ली जो भव-भवान्तरों तक साथ चलती रहती है। ऐसी गांठ मनुष्य जीवन को जटिल बना देती है।