बाघ संरक्षण में फेल साबित हो रहा मुकुंदपुर जू, जिम्मेदार संभाल नहीं पा रहे टाइगर सफारी

सतना | 3 अप्रैल 2016 को जब मुकुंदपुर में दुनिया की सबसे पहली व्हाइट टाइगर सफारी शुरू हुई थी  तब उम्मीद जगी थी कि मुकुंदपुर व्हाइट टाइगर सफारी बाघ संरक्षण की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी लेकिन ऐसा हो नहीं सका। यदि सफारी में अब तक वन्य प्राणियों की हुई मौत के आंकड़ों को देखें तो स्पष्ट है कि सफारी वन्य प्राणी संरक्षण के उद्देश्यों में पूरी तरह विफल रहा है। उल्टे ज्यादातर बाघ-बाघिन, तेंदुए और यहां तक कि भालू प्रबंधन की लापरवाही और अव्यवयस्था के कारण मौत की नींद सो गए।

विगत एक सप्ताह के भीतर गोपी और नकुल नाम के दो बाघों की मौत ने पुन: सफारी प्रबंधन की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। विडंबना की बात यह है कि व्हाइट टाइगर सफारी में बाघों की लगातार मौत हो रही है मगर वन मंडलाधिकारी राजेश राय और सफारी डायरेक्टर संजय रायखेड़े पर कभी जांच की आंच तक नहीं आई है। यदि आंकड़ों को देखा जाय तो वन मंडलाधिकारी के 7 माह के अल्प कार्यकाल में सफारी के 3 बाघ मौत की नींद सो चुके हैं। 

सवालों के घेरे में सफारी के अधिकारी 
व्हाइट टाइगर सफारी के पहले साल में ही आठ महीने के भीतर 7 दिसंबर 2016 को बाघिन राधा की मौत हो गई।  यहां से प्रारंभ हुआ बाघों की मौत का सिलसिला अभी भी नहीं रूका है। 12 अक्टूबर 2019 को जेसमीन नामक बाघिन के शावक की भी मौत हो चुकी है। बाघ के अलावा अन्य वन्य प्राणी भी मरते रहे हैं। वर्ष 2020 में भी दो बाघिनों व एक बाघ की जान चली गई। 24 अप्रैल 2020 को मुकुंदपुर जू में बाघिन दुर्गा की मौत का कारण बीमारी बताया गया ।  

बाघिन पांच दिन बीमार रही पर समुचित इलाज नहीं मिला। उसे रह-रहकर तेज बुखार आ रहा था। जू के डॉक्टर बीमारी का ठीक से अंदाज तक नहीं लगा पाए। नतीजतन उसकी मौत हो गई। दुर्गा की मौत से सफारी प्रबंधन उबर भी नहीं पाया था कि 6 जून 2020 को सुबह 10 बजे सफारी के एक और बाघ बंधु की मौत हो गई। 24 दिसंबर को व्हाइट टाइगर सफारी में बीते साल तीसरे बाघ गोपी की मौत हो गई। प्रबंधन अभी गोपी के मौत के कारणों की जांच ही कर रहा था कि 1 जनवरी का दिन नकुल की मौत का संदेशलेकर आया। अप्रैल 2019 से लेकर अब तक 4 बाघों का एक  ही सफारी में मरना कई संगीन सवाल खड़े करता है। 

क्या खान-पान में है गड़बड़ी 
मुकुन्दपुर वाइट टाइगर सफारी में वन्य प्राणियों को खासकर बाघों को परोसी जानी वाली खाद्य सामग्री में क्या गड़बड़ी है? क्या वन्य प्राणी प्रदूषित खाद्य सामग्री से बीमार होकर काल कवलित हो रहे हैं। हालांकि पीएम रिपोर्ट से ऐसेसंकत तो नहीं लिे हैं लेकिन यह प्रदूषित खान पान की शिकायत पर सेंट्रल जू अथारिटी जांच कर चुकी है। अथॉरिटी के मेंबर सेकेट्री के निरीक्षण में खुलासा हुआ था कि टाइगर सफारी प्रबंधन में लापरवाही बरती जा रही  है। यहां दिया जाने वाला मांस बेहद गैर हाइजेनिक माहौल में रखा जाता है।

सेन्ट्रल जू अथारिटी के मेंबर सेकेट्री ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए वाइट टाइगर सफारी के डायरेक्टर को जारी नोटिस में बताया था, कि नियमानुसार जिन ट्रे में जानवरों का मांस और भोजन ढोया जाता है उसे नियमित तौर पर रोज धोया जाना चाहिए।  इस  मामले में सफारी के तत्कालीन डायरेक्टर से जवाब तलब भी हुआ था । हालांकि सफारी प्रबंधन का दावा है कि निरीक्षण के बाद कमियां सुधार ली गई हैं।

प्रहरियों की वर्दी पर भी सवाल़

मुकुंदपुर व्हाइट टाइगर सफारी की सुरक्षा के लिए तैनात प्रहरियों की वर्दी पर भी  सवाल उठ रहे हैं दरअसल सफारी के प्रहरी जो वर्दी पहनते हैं वह बिल्कुल भारतीय सेना की तरह है और  उनमें सेना के प्रतीक चिन्हों को भी उकेरा गया है। जानकारों का कहना है कि पठानकोट हमले के बाद गृह मंत्रालय ने अनाधिकृत तरीके से आर्म्ड फोर्स (आर्मी, नेवी, एयरफोर्स) की वर्दी या उसके जैसी दिखने वाली यूनिफॉर्म पहनने पर आईपीसी की धारा-140 और 171 के तहत मामला दर्ज करने के प्रावधान बनाए हैं और इसकी जानकारी भी मंत्रालय की ओर से राज्य सचिवालय को अरसे पहले भेजी जा चुकी है जिसके तहत ग्आर्म्ड फोर्स की तरह दिखने वाले कपड़े पहनने या प्रतीक चिन्ह का इस्तेमाल करने पर अधिकतम तीन महीने तक की जेल और 500 रुपये का जुर्माना हो सकता है। शनिवार को सफारी के प्रहरियों की वर्दियां चर्चा का विषय बनी रहीं। 

नर बाघ नकुल के स्वास्थ मे  गिरावट देखने पर वन्यप्राणी चिकित्सक डॉ. जेपी त्रिपाठी एवं डॉ अभय सेंगर द्वारा इलाज किया गया पर इलाज के दौरान ही दोपहर 12.06 बजे  नाइट हाउस के सेल में बाघ की मृत्यु हो गयी।  मृत्यु के कारणों की विस्तृत जांच हेतु सेम्पल एकत्रित कर  दाह संस्कार किया गया।
राजेश राय, डीएफओ

जहां वन्य प्राणियों को रखा जाता है वहां की साफ-सफाई व्यवस्था व वन्य प्राणियों की खान-पान व्यवस्था बेहद सुदृढ़ होना चाहिए क्योंकि  इन्हीं  अव्यवस्थाओं से वन्य प्राणी संक्रमित या बीमार होकर दम तोड़ते हैं। दरअसल वन्य प्राणी प्राकृतिक व शुद्ध आवास में रहने के आदी होते हैं।  ऐसे में उनका फारेस्ट कंजर्वेशन ज्यादा प्रभावी तरीका है। 
श्रीकांत चंदोला, रिटायर्ड पीसीसीएफ एंड  एचएफएफ उत्तराखंड 

देखिए जब तक सफारी व अभयारण्यों में वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट्स तैनात नहीं होंगे तब तक ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाना कठिन होगा।  दरअसल प्रशिक्षित न होने के कारण वनकमी वाइल्ड लाइफ की  साइकोलॉजी  नहीं समझ पाते। यह बेहद आवश्यक है कि वन्य प्राणियों के आचार विचार व जीवन शैली की उन्हें समझ हो। 
राजेश दीक्षित, वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट