दिव्य विचार: सत्य ही परमेश्वर है- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि बात सत्य की है। उस सत्य की जिसके विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता। सत्य अकथ्य है पर अलभ्य नहीं। सच के बारे में कहा नहीं जा सकता पर अनुभव जरूर किया जा सकता है। भारतीय परम्परा में सत्य को परम सत्ता कहा है। सत्य को परमेश्वर कहा है। हमारे तीर्थकर भगवन्तों ने भी कहा है कि सत्य ही परमेश्वर है, सत्य ही भगवान है। हर व्यक्ति के भीतर वह सत्य है। उस सत्य के विषय में क्या कहा जाए। सत्य को पहचानने की जरूरत है। जो सत्य को पहचानता है वही सत्य को प्राप्त कर पाता है। सत्य को मनुष्य पहचानें, सत्य पर निष्ठावान बनें और फिर सत्य का आचरण करें। तब हम परम सत्य को उपलब्ध कर सकेंगे। आज मैं आपसे सत्य की कोई बात नहीं करूँगा क्योंकि उसके बारे में कुछ कहा ही नहीं जा सकेगा। जो कुछ भी बात है वह सत्याचरण की है। सत्य की उपलब्धि के लिए किया जाने वाला आचरण सत्याचरण है। हमारे कदम सत्याचरण की ओर बढ़ने चाहिए। वस्तुतः जिसके हृदय में सत्य के प्रति प्रगाढ़ निष्ठा होती है वही सत्याचरणी होता है। जो सत्याचरणी होता है वही अपने जीवन का वास्तविक अर्थ में कल्याण कर सकता है। जीवन में सत्य का आचरण सत्य की निष्ठा के बाद ही संभव है। बंधुओं! आज की चार बातें हैं- नम्बर 1 - सत्य की पहचान । नम्बर 2- सत्य की निष्ठा, सत्यनिष्ठा। नम्बर 3- सत्य आचरण और नम्बर 4- सत्य की उपलब्धि। सबसे पहले जीवन में सच क्या इसे पहचानो। सच की पहचान क्या है? आपको पता है सच क्या है? मैं आपसे सवाल करता हूँ दो और कितने होते हैं? 2 और 2. चार ये सच है और हाँ 22 ये भी सच है। 2 और 2, चार, 2 और 2, 22 और 2 और 2 जीरो । क्या हो गया? 2 माइनस 2 बराबर जीरो हुआ न ? फिर सच क्या है? सच को पहचानना बहुत कठिन है। मनुष्य के जीवन में सबसे बड़ी विडम्बना ये है कि जो सामने दिखता है वह उसे ही सच मानता है।