उत्तर में प्रयागराज, दक्षिण में बिलासपुर क्षेत्र तक था विंध्य प्रदेश
सतना | कुछ ऐसी ही भावनाओं के साथ इन दिनों विंध्य प्रदेश के पुनर्गठन की मांग मुखर हो रही है। विन्ध्यप्रदेश के पुनर्गठन को लेकर यहां 25 मार्च को ‘हमारा विन्ध्य हमें वापस लौटा दो ’ अभियान के लिए समर्थन जुटाने आयोजित की जा रही विशाल वाहन रैली और सभा की तैयारियां युद्धस्तर पर जारी हैं । उत्साहित युवा वर्ग ग्रामीण क्षेत्रों का भ्रमण कर जहां नव युवकों को संगठित करने में जुटा है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिस विंध्य प्रदेश की मांग उठाई जा रही है उसका इतिहास कैसा था? जानकार बताते हैं कि मध्यप्रदेश का गठन एक नवंबर 1956 को हुआ था, उसके पहले विंध्य प्रदेश का अपना अस्तित्व था।
आज हम उसी विंध्य प्रदेश के इतिहास की बात करते हैं। विंध्य प्रदेश, भारत का एक भूतपूर्व प्रदेश था जिसका क्षेत्रफल 23,603 वर्ग किमी. तक फैला था। भारत की स्वतन्त्रता के बाद सेन्ट्रल इण्डिया एजेन्सी के पूर्वी भाग की रियासतों को मिलाकर 1948 में इस राज्य का निर्माण किया गया था। इसकी राजधानी रीवा बनाई गई थी। इसके उत्तर में उत्तर प्रदेश एवं दक्षिण में मध्य प्रदेश था। विंध्य क्षेत्र पारंपरिक रूप से विंध्याचल पर्वत के आसपास के पठारी भाग को कहा जाता है। 1948 में भारत की स्वतंत्रता के बाद मध्य प्रदेश ,उत्तर प्रदेश व छत्तीसगढ़ में स्थित कुछ रियासतों को मिलाकर विंध्यप्रदेश की रचना की गई थी। इसमें भूतपूर्व रीवा रियासत का एक बड़ा हिस्सा, बघेलखंड, बुंदेलखंड आदि थे।
सतना-रीवा थे प्रमुख नगर
इसके उत्तर में उत्तर प्रदेश तथा दक्षिण में मध्य प्रदेश के दतिया तक फैला हुआ था। 1 नवम्बर 1956 को ये सब मिलाकर मध्यप्रदेश बना दिए गए थे। यह क्षेत्र सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण समझा जाता है। सतना, रीवा विंध्य प्रदेश के बड़े नगरों में शुमार किए जाते थे। यह पश्चिम में दतिया, पूर्व में सोनभद्र, उत्तर में प्रयागराज, दक्षिण में बिलासपुर क्षेत्र तक फैला था। विंध्य प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री पं. शंभूनाथ शुक्ल थे, जो शहडोल के रहने वाले थे। उनके नाम पर शहडोल में बड़ा शासकीय महाविद्यालय है और रीवा विश्वविद्यालय का सांस्कृतिक हाल भी उन्हीं के नाम पर है। राजधानी भोपाल स्थित मंत्रालय में भी पं. शंभूनाथ शुक्ल के नाम पर कई कक्ष स्थापित है।
गंगा-चिंताली दे चुके हैं शहादत
आजादी के बाद रीवा स्टेट विंध्य प्रदेश के रूप में अस्तित्व में आया। एक ऐसा प्रदेश जो प्राकृतिक और ऐतिहासिक संपदाओं से परिपूर्ण था। 1952 में पहली बार विंध्य प्रदेश की विस का गठन किया गया। चार साल तक अस्तित्व में रहे इस प्रदेश के विलय का फरमान भी सरकार ने जारी कर दिया। स्थानीय स्तर पर विरोध शुरू हुआ, आंदोलन छेड़े गए। यह पहला अवसर था जब युवाओं और छात्रों के हाथ में आंदोलन की कमान थी। पुलिस की गोलियों से गंगा, चिंताली नाम के दो आंदोलनकारी शहीद हुए। दर्जनों की संख्या में लोग जख्मी हुए।
जब चलती विधानसभा में घुस गए थे विंध्यवासी
ऐसा नहीं है कि 1956 में विंध्य प्रदेश को मप्र में विलय के दौरान विरोध नहीं हुआ था, बल्कि विरोध ऐसा था कि वह घटना लोकतंत्र के काले पन्नों में दर्ज हो गई थी। इतिहास के झरोखे से झांकते हुए सहित्यकार चिंतामणि मिश्र बताते हैं कि उस दौरान विंध्य की राजधानी में विधानसभा चल रही थी कि तभी समाजवादियों ने उग्र आंदोलन किया और विरोध जताने विधानसभा के भीतर घुस गए थे। मौजूदा समय पर रीवा के घोड़ा चौराहा के पास जहां नगर निगम कार्यालय है, वहां विंध्य प्रदेश की विधानसभा संचालित होती थी। इस आंदोलन को उस दौरान श्रीनिवास तिवारी, जगदीश चंद्र जोशी और यमुना प्रसाद शास्त्री जैसे प्रखर नेताओं ने आंदोलन की अगुवाई की थी।
मैं विंध्यप्रदेश हूं
‘मैं विंध्य प्रदेश हूं। मेरा जन्म 1948 में हुआ लेकिन 1956 में मुझे नष्ट कर दिया गया लेकिन फिर भी मैं बघेलखंड और बुंदेलखंड के कण-कण में हूं। हर विंध्यवासियों के धड़कन और जेहन में , आपके विचार और सपने में हूं। मैं रवीन्द्र नाथ टैगोर के राष्टÑगान की पंक्ति में हूं, मैं छत्रसाल की वीरता में हूं , मैं बघेली में हूं, मैं खेतो में हूं मैं खलिहानों में हूं, लेकिन मैं केवल अस्तित्व में नहीं हूं। शायद विंध्यवासियों ऐसा कोई सार्थक प्रयास नहीं किया गया था , मैं फिर से अस्तित्व में आना चाहता हूं और विंध्य प्रदेश के निवासियों का दुख दर्द दूर कर उन्हें उतकृष्ट प्रदेश के रूप में ढेर सारा प्यार देना चाहता हूंं जो अगनित हो और अवर्णीय हो। ’
बुंदेलखंड वासियों के जनसमर्थन जुटाने की चुनौती क्योंकि पृथक बुंदेलखंड की मांग भी कई बार उठाई जा चुकी है। कटनी व जबलपुर से सटे क्षेत्र के रहवासियों का समर्थन क्योंकि उस क्षेत्र के जनप्रतिनिधि पृथक महाकौशल की आवाज गाहे-बगाहे बुलंद करते हैं। सभी राजनैतिक दलों को इसके लिए तैयार करना जैसा कि पूर्व के आंदोलनों में एकजुट किया गया था।
सिर्फ विकास का नाम लेकर पृथक विंध्यप्रदेश की मांग सही नहीं है। विकास जनप्रतिनिधियों और सरकार के नजरिए से होता है। हां यह बात सही है कि विंध्य प्रदेश के संसाधनों का लाभ विंध्यवासियों को मिलना चाहिए। विकास के इमानदाराना प्रयास से ही विकास संभव है। फिर चाहे वह विंध्य प्रदेश हो या मध्यप्रदेश। इसमें कोई सवाल नहीं है कि विंध्य प्रदेश विंध्यवासियों को मिलना चाहिए। इसके लिए पूर्व में समाजवादियों ने बड़े आंदोलन किए और जानें भी गवार्इं।
चिंतामणि मिश्र, साहित्यकार
विंध्य प्रदेश विंध्यवासियों का जन्मसिद्ध अधिकार है इसे राजनीतिक षडयंत्रों के तहत छीना गया। सौभाग्य से 10 मार्च 2000 को मैने विधानसभा का वह नजारा भी देखा था जब विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी ने प्रस्ताव रखा था। उस दौरान विंध्य के जनप्रतिनिधियों के अलावा बुंदेलखंड के तकरीबन एक दर्जन विधायकों ने लिखित में पृथक विंध्य प्रदेश बनाने की सहमति दी थी। हालांकि राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई में विंध्य हार गया अन्यथा उत्तराखंड व झारखंड के गठन के दौरान ही विंध्य प्रदेश बन गया होता।
हरिहर प्रसाद तिवारी, संयोजक, विध्य भारती
विंध्य प्रदेश बनना चाहिए , इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता। विकास होगा और विंध्यवासियों को इसका लाभ भी मिलेगा लेकिन इसके लिए आवश्यक है कि पहले पूरा प्रारूप बने । मसलन कितने जिले होंगे , क्या प्राकृतिक संसाधन होंगे, आय के संसाधन किस प्रकार से संतुलित किए जाएंगे। प्रारूप बनाए बिना विंध्य प्रदेश की मांग हवा में लट्ठ भांजने जैसी होगी। पूरी तैयारी के साथ विंध्य प्रदेश की मांग उठाई जाएगी तो निश्चय ही इसका प्रतिफल मिलेगा।
एड. नरेंद्र सिंह, वरिष्ठ अधिवक्ता
देखिए विंध्यप्रदेश निश्चित तौर पर बनना चाहिए। हीरा, कोयला व भूसंपदाओं से समृद्ध विंध्य का एक अलग अस्तित्व होने से इस क्षेत्र का विकास द्रुतगति से होगा। छत्तीसगढ़ इसका उदाहरण है जो तेजी से विकसित प्रदेशों की श्रेणी में आने को अग्रसर है। इस मुहिम को राजनीतिक चश्मे से इतर देखना होगा और समूचे क्षेत्र की जनता को एकजुट होकर अपना अधिकार मांगना होगा तभी यह सपना पूर्ण होगा।
एड. संतोष खरे, वरिष्ठ अधिवक्ता
विन्ध्य प्रदेश की लड़ाई राजनैतिक नहीें है, जनसमर्थन से हम भी महानगरों की तर्ज पर शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, छोटे-बड़े उद्योग एवं व्यापार के साथ-साथ बुनियादी विकास चाहते हैं जो पृथक राज्य बनने से ही संभव है। उन्हानें कहा कि विन्ध्य प्रदेश के बनने का भविष्य युवाओं के कंधो पर टिका है। युवाओं को आगे आकर आंदोलन की बागडोर संभालनी चाहिए ।
रामप्रताप सिंह, संयोजक, नर्मदा जल सतना लाओ संघर्ष समिति