पुराने ढर्रे पर चल रही विवि की कार्रवाई, परेशान हो रहे छात्र
रीवा | अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय द्वारा विकसित किया गया डिजिटलीकरण दिखावा मात्र का रह गया है। बता दें कि इस योजना के अनुसार विश्वविद्यालय द्वारा डिग्रियों को वेबसाइट में अपलोड कर दिया जाना है जिससे कोई भी छात्र कहीं भी और कभी भी विश्वविद्यालय की वेबसाइट में जाकर अपनी डिग्री प्राप्त कर सकता है। मगर हालात कुछ ऐसे हैं कि बिना अधिकारियों के चक्कर काटे डिग्री नहीं मिल पाती है। ताज्जुब की बात तो यह है कि आॅनलाइन डिग्री प्राप्त करने की व्यवस्था हाल की नहीं बल्कि दो साल पुरानी है मगर आज तक पूरी नहीं हो पाई है।
गौरतलब है कि अगर डिजिटलीकरण की यह व्यवस्था को अमली जामा पहनाया जा चुका होता तो किसी आधुनिक विश्वविद्यालय की तरह यहां के छात्रों को भी आॅनलाइन उनकी डिग्री मिल जाती। इससे विश्वविद्यालय के कर्मचारियों और छात्रों दोनों का समय बचता। मगर यहां काम अभी भी पुराने ढर्रे पर चल रहा है। जब तक कोई छात्र 3 से 4 दिन लगातार विश्वविद्यालय की खाक न छान ले तब तक उसका काम पूरा नहीं हो पाता।
अमली जामा पहनाने के लिए जुटा है प्रशासन
विश्वविद्यालय के अधिकारी बताते हैं कि आने वाले दिनों में अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय की सारी व्यवस्थाएं आॅनलाइन हो जाएंगी। आॅनलाइन डिग्रियां, टाइम टेबिल व छात्र से जुड़ी हर एक गतिविधियां आॅनलाइन उपलब्ध हो जाया करेंगी। यह योजना पिछले दो साल से चल रही है मगर अब तक मूर्त रूप नहीं ले पाई है। अधिकारियों के यह दावे कितने सही साबित होते हैं यह भविष्य के गर्त में है।
दूरदराज से आ रहे छात्र
जो छात्र रीवा शहर में रहते हैं उन्हें ज्यादा कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता। मगर जो दूरदराज गांव और सीधी, सिंगरौली, सतना, शहडोल में रहते हैं उन्हें यहां आकर डिग्री के लिए तमाम मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। जाहिर है कि एक दिन में विश्वविद्यालय डिग्री उपलब्ध कभी नहीं कराता। ऐसे में दूरदराज से आए छात्रों को रीवा में रुकना पड़ता है और उनका पैसा खर्च होता है। अगर विश्वविद्यालय में इस व्यवस्था का डिजिटलाइजेशन हो जाता तो छात्र को विश्वविद्यालय परिसर में आने की जरूरत ही न पड़ती।
दूसरे विश्वविद्यालयों में है यह व्यवस्था
अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय को छोड़ दें तो प्रदेश के बाकी विश्वविद्यालय जैसे जीवाजी, अहिल्याबाई, रानी दुर्गावती, बरकतउल्ला आदि में यह व्यवस्था है कि छात्रों का पूरा डाटा आॅनलाइन सेव रहता है। इसी कवायद में विश्वविद्यालय भी लगा हुआ है मगर योजना को सही ढंग से अपनाने में कठिनाई आ रही है। अधिकारी बताते हैं कि कोरोना के चलते इस योजना में कुछ दिन के लिए रुकावट आ गई थी और अब जल्द ही नए सत्र से डिजिटलाइजेशन की ओर विश्वविद्यालय अग्रसर हो रहा है।
लोकसेवा गारंटी की कोई गारंटी नहीं
विश्वविद्यालय में लोकसेवा गारंटी के तहत अधिनियम को लागू किया गया है मगर इसकी कोई गारंटी नहीं है कि इस अधिनियम के अनुसार विश्वविद्यालय में काम हो पाए। रोजाना अलग-अलग विभागों में पढ़ने वाले छात्र अपनी समस्याओं को लेकर विश्वविद्यालय की खाक छानते हैं। विश्वविद्यालय को चाहिए कि लोकसेवा अधिनियम के तहत निश्चित समय सीमा में छात्रों की समस्याओं का समाधान किया जाए। जिस कार्य के लिए एक या दो दिन का समय लगना चाहिए, उसे पूरा कराने में एक से दो हफ्ते और कभी-कभी दो महीने लग जाते हैं।
एक वजह यह भी है कि विश्वविद्यालय के लिपिकीय स्टाफ समय पर अपनी डेस्क पर मौजूद नहीं रहता। जिसका जब मन पड़ता है उठकर नाश्ता, पानी करने चला जाता है। यहां तक कि प्रथम अपील के लिए निश्चित समय सीमा को प्रबंधन नजरअंदाज कर देता है। वर्तमान की बात करें तो विश्वविद्यालय में ऐसे सैकड़ों आवेदन डम्प हैं जिन्हें आवेदन किए हुए महीनों बीत चुके हैं और कोई कार्रवाई नहीं हुई है।