तिरंगा यात्रा लेकर निकले मुठ्ठीभर कांगे्रसी
सतना | कांग्रेसियों की तिरंगा यात्रा जो एम माह पहले से तय थी शनिवार को सतना शहर में निकाली गई। होने को तो ये 20 मार्च कांग्रेरस सरकार की वर्षी है पर कांग्रेसी इसे लोकतंत्र सम्मान दिवस बता कर इस तारीख को मना रही है। सतना में लोकतंत्र के सम्मान में निकाली गई तिरंगा यात्रा में महज मुठ्ठी भर कांग्रेसी नजर आए और कांगे्रसियों की यत तादात तब थी जब ये आयोजन एक माह पहले से ही तय था। शनिवार को यात्रा के नजारे देख ऐसा लगता है कि जन समूह तो छोड़िए कांग्रेस के पास अब कार्यकर्ता भी नहीं है। बहरहाल औपचाकिताएं पूरी हुई और सतना में भी तिरंगा यात्रा निकल गई। महात्मा गांधी से लेकर डॉ अंबेडकर तक को माला पहना दिया गया।
केवल जिला मुख्यालय फिर भी ये हाल
कांग्रेस की तिरंगा यात्रा के ये हाल तो तब थे जब पूरे जिले में केवल एक कार्यक्र म था। जिला मुख्यालय में तिरंगा यात्रा निकाली जानी थी बावजूद इसके एक कार्यक्रम में कांग्रेसियों कों 100 की संख्या जुटाने में पसीना आ गया। सतना के अलावा दूसरे विधानसभा के नेता न कार्यकर्ता यात्रा में आए। क्या वाकई कांग्रेस का जिला संगठन अब बेहद कमजोर हो चुका है...क्या जिला अध्यक्ष पर संवाद न करने के आरोप सही हैं और मुठ्ठी भर कांग्रेसी उसी के नतीजे हैं। चर्चा तो ये भी रही कि कुछ नेता तो इस लिए भी सामने रहे कि वो निकाय चुनाव में अपने को दावेदार मान रहे हैं वरना नजारे कुछ और ...होते। अब सड़क पर फैलकर चलने से भला संख्या कहां बढ़ जाएगी।
युवक कांग्रेस भी नदारद
कांग्रेस के जिला संगठन और दो अध्यक्षों को मिलाकर किसी तरह इतने लोग एकत्र कर लिए कि झंडा पकड़ लें पर बड़ा सवाल ये कि कांग्रेस का मोर्चा संगठन तिरंगा यात्रा में सामिल नहीं हुआ। युवक कांगे्रस का कोई भी कार्यकर्ता सरकार की वर्षी जिसे लोकतंत्र सम्मान दिवस बताया जा रहा है उसमें सरीक नहीं हुआ। युवक कांग्रेस तो छोड़िये सतना में कांग्रेसियों का एक गुट तो बिलकुल नहीं था। क्या कमलनाथ और पार्टी के कार्यक्रम में भी गुटबाजी ही जरूरी है और फिर जब बात तिरंगा यात्रा की हो तो देश का झंडा उठाने में दूसरे गुट के कांग्रेसियों को शर्म आने लगी जो एक भी कार्यकर्ता -नेता मौजूद नहीं थे।
जबकि दो दिन पहले सर्किट हाउस में कुर्ते का कलफ दिखाने कई नेता मौजूद थे। गुटबाजी ऐसी कि सतना में कांग्रेस की दशा और दिशा दोनो दिख रही है। जाहिर है कि संगठन में बदलाव होना चाहिए पर उससे पहले जरूरी है कि गुट और गुट के लीडरों के साथ नेताओं को पार्टी.....सिखाए। वहीं यदि अध्यक्ष दिलीप मिश्रा ने अपने कार्यकतार्ओं से संवाद किया तो फिर क्या उनकी बात को कार्यकर्ता या नेता तवज्जो नहीं देते...सुलगता सवाल है....?