दिव्य विचार: जीवन को सन्मार्ग पर लगाओ- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: जीवन को सन्मार्ग पर लगाओ- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि यही नियति है बन्धुओ ! सच्चे अर्थों में विचार किया जाये तो संसार के हर संयोग की स्थिति केवल एक पत्ते की तरह ही है, जो कल तक पेड़ पर टिका रहा है उसे झड़ना ही पड़ता है।' संत कहते हैं - कली कहीं पर खिल रही थी, वहीं पास में ही कोई फूल मुरझा रहा था। हकीकत तो यह है कि हर कली का आविर्भाव केवल मुरझाने के लिये होता है, आज कली खिली है, तो कल उसे मुरझाना होगा। सच तो यह है कि 'जो व्यक्ति खिलती हुई कली में उसके मुरझाने के रूप को देख लेता है, वही सच्चे अर्थों में प्रज्ञा को उपलब्ध हो जाता है, वह अपने जीवन को सन्मार्ग पर लगा देता है।' कली का खिलना एवं मुरझाना निश्चित ही है। क्या पता तुम्हारे जीवन की कली कब मुरझाये, इसलिये इस खिली हुई कली के सदुपयोग करने की कला सीख लो, और यही कला जीवन जीने की कला है। यह कला केवल वे ही सीख पाते हैं जो अनित्यभावना को प्राप्त कर लेते हैं। प्रकृति भी एक बहुत बड़ा शास्त्र है। सूरज का उगना और डूबना, जन्म और मरण या संयोग और वियोग ये हमें संदेश देते हैं- जो उगता है वह अस्त होता है। यह प्रकृति का नियम है। हमारा जन्म वस्तुतः जीवन का सूर्योदय है और मरण सूर्यास्त । पर हम यह सोचते हैं कि सूरज उगा है, तो सदैव उगा रहेगा, हमें सूरज के उगने का ख्याल तो रहता है, पर उसके डूबने का भान नहीं होता । संत कहते हैं जो मनुष्य सूरज के उगने के साथ-साथ उसके डूबने की घड़ी को अपने सामने रखता है, वह अंधेरा होने के पहले अपने लिये सब कुछ प्रबन्ध कर लेता है। और जो केवल सूरज के उगने के उल्लास में डूब जाता है, भविष्य में उसे भयानक अंधेरे का सामना करने के लिये मजबूर होना पड़ता है। ऋतुएं परिवर्तित होती रहती हैं। परिवर्तन संसार का नियम है। यह परिवर्तन अटल है। इसे कोई टाल नहीं सकता। बस यदि तुम इस परिवर्तन से कुछ प्रेरणा पाना चाहते हो तो तुम केवल इतनी प्रेरणा पा सकते हो कि जब तक कुछ परिवर्तित हो, तुम अपने भीतर के अपरिवर्तित स्वरूप को प्राप्त कर लो।