दिव्य विचार: जीवन को सार्थक बनाएं- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि संत कहते हैं-रात में ओस पड़ती है घास पर। ओस की बूंद कितनी देर चमकती है। जब तक धूप की किरणें उस पर नहीं पड़तीं। धूप की किरणें पड़ते ही उस बूँद का पता नहीं लगता है कि वह कहाँ चली गई। ऐसे ही हमारा यह जीवन है, आज यह चमकता हुआ जीवन हमें दिखाई पड़ रहा है, लेकिन यह जीवन कितने पल तक ठहरेगा ? इसका कोई अता-पता नहीं है। आज जीवन है, अगले पल की बात को जाने दें, अगली श्वॉंस का भी भरोसा नहीं। जो इस सत्य को जानता है, वह अपनी एक-एक श्वॉंस को सार्थक करने का प्रयास करता है। तुम्हारी जिंदगी भी अंजुली से गिरते हुए जल के समान है, एक-एक बूँद जल अंजुली से गिरता है, उसी तरह जीवन क्षण-क्षण क्षीण होता जा रहा है। अतः जो जीवन को सार्थक बनाने की कला सीखता है, उसको ही अनित्यभावना का सार प्राप्त होता है। संत कहते हैं - तुम्हारे जीवन का एक क्षण भी जाये, उससे पहले उस क्षण को निचोड़ कर उसमें से अमृत प्राप्त कर लो। यदि जीवन के स्वरूप को समग्रता से पहचान लिया और जीवन के सार तत्त्व को पाने का उद्देश्य बना लिया है तभी हमारा जीवन सार्थक हो सकेगा, अन्यथा हमारा जीवन यूँ ही आना-जाना है, हमें कुछ भी प्राप्त नहीं हो सकता। बन्धुओ ! एक-एक क्षण में हमारा जीवन क्षीण होता जा रहा है। मैं तो कहता हूँ कि मरने में कोई आश्चर्य नहीं है, आश्चर्य तो केवल इस बात का है कि हम जिंदा हैं ! जिंदा रहना आश्चर्य की बात है, मरना कोई आश्चर्य की वस्तु नहीं है, क्योंकि जिस समय हम जन्म लेते हैं, उसी समय हमारे साथ मौत की विधि भी सुनिश्चित हो जाती है। वस्तुतः जन्म के साथ ही व्यक्ति मौत का वारंट लेकर आता है। उत्पत्ति के साथ अन्त भी जुड़ा हुआ है। जो इस बात को जानता है वह उत्पत्ति में प्रसन्न नहीं होता और मृत्यु में खिन्न नहीं होता है, अपितु जितना जीवन बचा है, उसका उपयोग करने लगता है।