दिव्य विचार: जो जैसा है उसी में संतुष्ट रहे- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: जो जैसा है उसी में संतुष्ट रहे- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि संसार में जीना चाहते हो, तो जो है, जैसा है, जितना है, उतने में संतुष्ट रहो। तभी तुम्हारा जीवन सुखमय बन सकता है। यदि तुम संसार में सुख पाने की चाह में जिओगे तो तुम्हारे जीवन में आकुलता के सिवाय और कुछ नहीं मिलेगा। संसार में एक भी प्राणी ऐसा नहीं है जो सर्वथा सुखी हो, अभावग्रस्त न हो। क्योंकि दुःख संसार की अनिवार्यता है। जिसके पास कुछ नहीं है वह इसे पाने की चाह में रात-दिन व्याकुल है । जिसके पास कुछ है वह उसे बचाने और बढ़ाने की कोशिश में रात-दिन पागल है। एक वह है जिसके पास अभाव है, वह भी दुखी है। क्योंकि उसे अभाव साल रहा है और दूसरा जिसके पास अतिभाव है वह भी दुःखी है, क्योंकि उसे संभालना है। गरीब पाने की चाह में व्याकुल है तो अमीर बचाने के उपक्रम में है। वस्तुतः पाना और बचाना दोनों एक ही है। जो पा गया वह भी अशान्त है, जिसने नहीं पाया वह भी अशान्त है। अशान्ति संसार की परिणति है। हम संसार में अपनी दृष्टि दौड़ाने की कोशिश करें तो हर व्यक्ति के जीवन में किसी न किसी प्रकार का दुःख तुम्हें दिखायी जरूर पड़ेगा। यह बात और है कि कुछ लोग हैं जो अपने दुःखों को व्यक्त कर देते हैं और कुछ लोग हैं जो अपने दुःखों को व्यक्त भी नहीं कर पाते। इसे समझने की कोशिश करना। यदि इस व्यापक दृष्टि से तुम संसार को देखोगे तो तुम्हें दिखेगा कि मेरे जीवन में जो दुःख है, वह बहुत थोड़ा है। संसार में तो ऐसे भी लोग है जिनका दुःख मेरे से हजार गुना ज्यादा है, लेकिन उस हजार गुना दुःख में भी वे प्रसन्नता से जी रहे हैं। तब मैं अपने इन थोड़े से दुःख में प्रसन्नता से कैसे नहीं जी सकता ? संसारभावना का मतलब कुल इतना है कि दुःख को संसार की नियति मानकर में भी प्रसन्नता से जीने की कला सीख लेना और यह जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। दुःख वस्तुतः हमारा जीवन तो काँटों से घिरे फूल की भाँति है। फूल की नियति है काँटों के बीच रहना, लेकिन फूल बहुत बड़ा संदेश देता है काँटों से घिरे रहने के बाद भी मुस्कुराओ।